जो मेरी रचना का मित्र नहीं वह मेरा मित्र नहीं! जानकीपुल ब्लॉग से साभार प्रस्तुत आज हिंदी दिवस है लेकिन बजाय रोने ढोने के या 'जय हिंदी! जय हिंदी!' का झंडा उठाने के बजाय आज पढ़ते हैं हिंदी की आलोचना को लेकर कवि-लेखक, 'समालोचन' जैसे सुपरिचित ब्लॉग के मॉडरेटर अरुण देव के विचार- मॉडरेटर. ========================== १. हिंदी के आदि संपादक आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जब रेलवे में तारबाबू थे तब हिंदीशिक्षावली का तृतीय भाग प्रकाशित हुआ था- इसके लेखक थे इलहाबाद के तत्कालीन डिप्टी इंस्पेक्टर पं. दीनदयाल तिवारी और डिप्टी कलेक्टर लाला सीताराम . यह पाठ्य पुस्तक तब के सर्वश्रेष्ठ मुद्रक श्री चिंतामणि घोष के इन्डियन प्रेस (इलाहाबाद) से मुद्रित थी. १८९९ ई. ‘ हिंदीशिक्षावली के तृतीयभाग की समालोचना ’ शीर्षक से प्रकाशित अपने इस ६२ पृष्ठों की आलोचना में उन्होंने इसकी भाषा, सामग्री और दृष्टि को लेकर गम्भीर सवाल उठाये, इसका असर यह हुआ कि सरकार ने इसे पाठ्यक्रम से हटा दिया. १९०० ई. में सरस्वती पत्रिका का प्र...
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