भारत में आई टी के जनक सैम पित्रोदा मानते हैं कि इंटरनेट में एटम बम से भी बड़ी ताक़त है.
प्रस्तुतकर्ता एवं संकलनकर्ता : राम बालक राय
सौजन्य बीबीसीडॉट कॉम
सैम पित्रोदा अपने कार्यालय में |
उनके अनुसार भारत में एक बड़ा बदलाव लाने में इंटरनेट की सबसे बड़ी भूमिका होगी.
सैम पित्रोदा ने इनोवेशन से लेकर सूचना और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों, मौकों और चुनौतियों पर खुलकर अपनी राय रखी.पढ़िए, सैम पित्रोदा से बातचीत के कुछ मुख्य अंश.
पूरी दुनिया इस समय इंटरनेट क्रांति को होते हुए देख रही है, भारत भी इस क्रांति से अछूता नहीं है. क्या इंटरनेट वाक़ई हमारे जीने का तरीक़ा बदल देगा?
इंटरनेट में बहुत बड़ी ताक़त है. हम तो कहते हैं कि ये एटम बम से भी बड़ी ताक़त है. हमें सोचना है कि इसका उपयोग देश बदलने में कैसे किया जा सकता है.
इंटरनेट हर चीज़ को तेज़ कर देता है. आधुनिकीकरण में, शिक्षा में, व्यवसाय में हर क्षेत्र में ये क्रांति कर सकता है.
भारत बीते काफ़ी समय से डिजिटल डिवाइड से जूझ रहा है, इस समस्या का सही समाधान क्या हो सकता है?
डिजिटल डिवाइड सिर्फ़ डिजिटल का नहीं है. ये डिवाइड पानी का है, शिक्षा का है, स्वास्थ्य का है, लाइफ़स्टाइल का भी है.
जैसे-जैसे डिजिटल का इस्तेमाल बढ़ेगा. ये चीज़ें बेहतर होंगी, मसलन डिजिटल का हेल्थ में इस्तेमाल, इत्यादि.
अगर हम एक सिस्टम बनाएं कि सब लोगों को ज्ञान मिल सके, जो उन्हें मिलना चाहिए तो सोचिए क्या बदलाव होगा.
आपने सिस्टम की बात की, 'नॉलेज शेयरिंग' के लिए किस तरह का सिस्टम कारगर होगा. सरकार की क्या भूमिका होगी?
सब ज़िम्मेदारी सरकार की नहीं हो सकती. दुनिया का क़सूर नहीं है कि हम आगे नहीं बढ़े. सब कहते हैं कि हम बराबर नहीं हैं.
अगर हर नागरिक अपनी ज़िम्मेदारी ले तो कोई दिक़्क़त ही नहीं होगी. हां ये ज़रूर है कि जो ग़रीब है, अशिक्षित है वो अपनी ज़िम्मेदारी कैसे लेगा?
हमें यहां माइंड सेट बदलना होगा. हमारे यहां 19वीं सदी का माइंडसेट है, 20वीं सदी की प्रक्रियाएं है और ज़रूरतें 21वीं सदी की है.
तो अगर हम नॉलेज शेयर करने का सही रास्ता भी नहीं निकाल पा रहे हैं, तो नई रिसर्च, नया नॉलेज कैसे इकठ्ठा करेंगे. इनोवेटर्स को कैसे प्रोत्साहित करेंगे?
देखिए इतना सारा नॉलेज दुनिया में पड़ा हुआ है. अगर हम नए नॉलेज की प्राप्ति पर ध्यान केंद्रित न भी करें...और केवल सार्वजनिक ज्ञान को लोगों तक सही तरह से पहुंचाए, तो ये भी ख़ुद में बहुत अच्छी बात होगी.
इनोवेशन के लिए सही माहौल का होना ज़रूरी बताया जाता है. क्या भारत में ऐसा माहौल पैदा किया जा सकता है?
हमारे लोग इनोवेटर्स हैं. हम ज़ीरो ले कर आए. हमारा अशोक स्तंभ है. अच्छे उदाहरण हैं.
मत भूलिए कि हम 1760 में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थे. हमारे पास तक्षशिला और नालंदा थे.
लेकिन ग़ुलामी के बाद समस्या शुरू हुई. समय लगेगा...हम थोड़े अधीर हैं. पचास साल एक देश के इतिहास में कम होता है.
हम कंपनी नहीं देश बना रहे हैं. माइंड सेट बदलने में समय लगता है. मैं जैसे सोचता हूं मेरे पिता कभी नहीं सोच पाते थे.
200 वर्षों की ग़ुलामी का असर तो ज्ञान पर भी पड़ा है.
भारत का आईटी उद्योग काफ़ी समृद्ध माना जाता है, लेकिन फिर भी इसकी ज़्यादातर ऊर्जा विदेशी मांगें पूरी करने में जाती है. देश के आईटी इंफ़्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने में इनकी कोई ख़ास रूचि क्यों नहीं दिखती.
इसमें दो चीज़ें हैं. एक तो हमारे यहां सॉफ़्टवेयर इंफ़्रास्ट्रक्चर की वैल्यू लोग नहीं समझते हैं. सबको चाहिए सॉफ़्टवेयर फ़्री में, कोई ख़रीदना नहीं चाहता.
दूसरी बात ज़रूरत की है, हमारी सरकार ने हमारे बैंक, हमारी पुलिस और हमारी ज्यूडिशियरी ने आईटी का उपयोग करना शुरू नहीं किया है.
हमारे यहां 32 करोड़ केस पेंडिंग हैं. इसे क्यों नहीं कंप्यूटराइज़्ड किया जाता? एक बार ऐसा कीजिए, फिर देखिए.
हर दिन दुनिया बदल रही है, नई चुनौतियां हैं, नए मौक़े हैं. ऐसे में भारत के लिए सबसे उपयुक्त क्षेत्र क्या होगा, किस तरफ़ ज़्यादा ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है?
पहले तो हमें मानव विकास पर ध्यान देना होगा. मानव विकास ज़रूरी है.
सड़क, बिजली जैसा आधारभूत ढांचा तो है ही लेकिन मानव विकास महत्वपूर्ण है.
अमरीका में सब कुछ है आधारभूत ढांचे के नाम पर लेकिन लाखों लोग जेल में है. ये भी सोचने वाली बात है.
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