एक महिला जज की जुबानी |
मैं, पंद्रह साल से दिल्ली हाईकोर्ट में बतौर वकील प्रेक्टिस कर रही थी। साथ ही मध्य प्रदेश उच्च न्यायलय में जज बनने की तैयारी भी। एक दिन परीक्षा उत्तीर्ण हुई और मुझे ग्वालियर में नियुक्ति मिली। मुझे ग्वालियर में जिला सत्र न्यायाधीश बनाकर भेजा गया। मैं बहुत खुश थी। लेकिन अचानक मेरी खुशी को किसी ने डस लिया हो। एक दिन मध्य प्रदेश के ही एक हाईकोर्ट के जज ने एक जूनियर अधिकारी के हाथों संदेश भिजवाया कि उनके बंगले पर कार्यक्रम है। उस पार्टी में मुझसे डांस फ्लोर पर डांस करने का दबाव बनाया। तब में जैसे तैसे बहाना बनाकर वहां से चली आई। उस जज का हौसला बढ़ता चला गया। वो मुझे प्रताड़ित करने के मौके खोजने लगे। एक दिन उन्होंने कहा कि हमने डांस फ्लोर पर आपके ठुमके लगाते देखने का मौका खो दिया, हम आपके डांस का इंतजार करेंगे। इसके अलावा कई ऐसे मौके होते जब वह मुझे प्रताड़ित करने की कोशिश करते। मेरी गलतियां खोजी जाने लगीं। वह जज मेरी गलतियां ढूंडते रहते। अगर गलतियां नहीं मिलती तों झुंझला उठते। मैं तनाव में आ गई। जज के हौसले बुलंद होते जा रहे थे। मानो उनके हौसले और भी बुलंद हो गए हों। मेरे से कोई गलती न हो और उन्हें मुझपर इसी बहाने भद्दी टिप्पणियां करने का मौका नहीं मिले। इसके लिए मै दफ्तर जल्दी सुबह आती थी। देर तक काम करती और देर में ही जाती थी। आखिर कार तंग आकर मैने एक दिन फैसला किया कि अब खुलकर बात की जाएगी। मैं अपने पति के साथ जज से मिलने पहुंच गई। आमने सामने बात चीत के बाद जज ने मुझसे पंद्रह दिन बाद मिलने को कहा। मैं पंद्रह दिन बाद मिली तो मुझे ट्रांसफर लेटर पकड़ा दिया गया। नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए मुझे सिंधी में कर दिया गया। मैं इतनी परेशान हो गई कि मेरे पास नौकरी छोड़ने के अलावा कोई और चारा नहीं रह गया। मैने 15 जुलाई को इस्तीफा दे दिया।
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