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सोभ की पुष्पा ने बहु-बेटियों की आत्मनिर्भरता को बना लिया अपना लक्ष्य
वर्तमान समय जहां लोग अपने अलावा किसी दूसरे के बारे में सोचते भी नहीं, हर समय दूसरों से ज्याद
बिहार के गया जिला पुष्पा ने अनोखा उदहारण पेश किया।
जहाँ एक ओर वर्तमान समय जहां लोग अपने अलावा किसी दूसरे के बारे में सोचते भी नहीं, हर समय दूसरों से ज्यादा कमाने का अरमान रखते हैं, तो वहीं बाराचटटी प्रखंड के सोभ बाजार की बहु पुष्पा कुमारी दूसरों की भलाई में अपना जीवन खपा रही हैं। उन्होंने इलाके की बहु-बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने का जो सपना संजोया, उसे अब तक पूरी ईमानदारी से निभाती चली आ रही हैं। इसी का नतीजा है कि इलाके में सुबह से शाम तक हाथों में प्लास्टिक के थैले थामे और उनमें कपड़ों के टुकड़े व सूई-धागे लेकर ग्रामीण महिलाएं आती-जाती दिखती हैं। ये बहु-बेटियां कहीं और से नहीं बल्कि पुष्पा के शालिनी सिलाई सेंटर, सोभ से आती हैं। जहा पुष्पा कुमारी बेटियों को हुनरमंद बनाने का बीड़ा उठाए उन्हें प्रेरणा दे रही हैं।
पुष्पा कहती हैं कि वर्तमान समय में जब तक हम बेटियों को आत्मनिर्भर बना घर के खर्चे में दो पैसे का सहयोग नहीं कराएंगे, तब तक इस महंगाई के युग में एक व्यक्ति से परिवार की गुजर-बसर नहीं होने वाली है। इसीलिए हमने ठाना कि अपने जैसे और भी बहु-बेटियों को सिलाई-कढ़ाई व डिजाइनिंग के कार्य सिखा उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाए, जिससे उन्हें अपना रोजगार मिल सके। वह बताती हैं कि उन्हें इस कार्य में अच्छी सफलता मिल रही है।
सालभर में 336 बेटियों को बनाती हूं हुनरमंद :
पुष्पा कहती हैं वे हर महीने 30 बेटियों को उनकी इच्छा के अनुसार सिलाई, कढ़ाई और डिजाइनिंग का कार्य सिखाने का काम कर रही हैं। यहां सीखने वालीं सभी बहु-बेटियां गरीब परिवार की हैं, जो अपने बूते दो पैसे की आमदनी करना चाहती हैं। वह अपनी मेहनत से मिले पैसे से आगे की पढ़ाई कर कुछ करने का जज्बा भी रखती हैं।
सीखने के लिए देती हैं सारी सामग्री-
शालिनी सिलाई सेंटर की संचालिका पुष्पा कहती हैं कि मेरे यहा जो भी बहु-बेटियां सिलाई, कढ़ाई सीखने आती हैं, उनको अपनी तरफ से सभी सामग्री सीखने के लिए उपलब्ध कराती हूं। वह बताती हैं कि इसकी एवज में वे प्रत्येक से हर माह 30 रुपये लेती हैं। अधिकांश महिलाएं एक माह में ही सिलाई का कार्य सीख लेती हैं। इनमें से अधिकांश बाराचट्टी के देहाती क्षेत्र की बेटिया हैं। वे काफी उत्साहित होकर यहां काम सीखने के बाद जाती हैं।
छह साल से दे रहीं हैं प्रशिक्षण
पुष्पा ने वर्ष 2011 के अगस्त माह में सिलाई-कढ़ाई के प्रशिक्षण कार्य को प्रारंभ किया था। शुरू में तो काफी कम एक-दो महिलाएं ही इसके लिए तत्पर हुई। धीरे-धीरे जब इसकी जानकारी होने लगी तो काफी संख्या में महिलाएं आने लगीं। आज इनकी संख्या में काफी इजाफा हो चुका है। वह बताती हैं कि वर्तमान में प्रतिदिन 39 बहु-बेटियां यहां प्रशिक्षण ले रहीं हैं। अब तो यहां प्रशिक्षण लेनी वालीं महिलाओं की संख्या एक हजार को भी पार कर चुकी है।
ससुराल के खर्च में कर रहीं हैं सहयोग
पुष्पा बताती हैं कि यहां सिलाई-कढ़ाई सीखने वाली अधिकांश महिलाएं आज शादीशुदा हो गई हैं। शादी के बाद उन्होंने खुद का रोजगार स्थापित कर लिया और ससुराल के खर्च में सहयोग भी कर रही हैं। ससुराल के लोग भी उनकी ओर से आर्थिक मदद मिलने से काफी प्रभावित होते हैं। जब वह मायके आती हैं, तो बिना मुझसे मिले नहीं जातीं। जब वह बताती हैं कि वे लोग ससुराल के खर्च में सहयोग करती हैं, तो मुझे यह सुनकर काफी संतोष होता है। ऐसा हो भी क्यों न, आखिर यही मूल कमाई तो मेरी है।
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