मां सरस्वती की प्रतिमा की पूजा कर मेडिकल छात्र-छात्राओं ने उत्सव धूमधाम से मनाया। एनएमसीएच परिसर स्थित नर्सिंग छात्रावास मेंराधना हु
samastipur jile me shantipurne manayi gayi saraswati puja |
बिहार के समस्तीपुर जिले भर में मां शारदे की पूजा बड़े हर्ष उल्लासः के साथ जगह-जगह पूजा पंडाल बनाकर मां सरस्वती की प्रतिमा की पूजा की गई है। पूजा पंडालों को करीने से सजाया गया है। इसकी सजावट देखते ही बन रही है। माघ शुक्ल पंचमी को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। आज ही के दिन वीणावादिनी की पूजा अर्चना की जाती है। शिक्षण संस्थानों से लेकर सावर्जनिक जगहों पर पूजा को लेकर तैयारी की गई है। आज का दिन दिन ज्ञान, विद्या, बुद्धिमत्ता, कला और संस्कृति की देवी मां सरस्वती को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि माघ शुक्ल पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा से विशेष फल प्राप्त होता है और बुद्धि प्रखर होती है। सरस्वती वाणी एवं ज्ञान की देवी है। ज्ञान को संसार में सभी चीजों से श्रेष्ठ कहा गया है। कहा जाता है कि जहां सरस्वती का वास होता है वहां लक्ष्मी एवं काली माता भी विराजमान रहती हैं। सरस्वती माता कला की भी देवी मानी जाती हैं अत: कला क्षेत्र से जुड़े लोग भी माता सरस्वती की विधिवत पूजा करते हैं। वाद्ययंत्रों की, चित्रकार अपनी तूलिका की पूजा करते हैं।
विद्या के देवी की उत्पत्ति
वसन्त पंचमी के दिन सरस्वती माता की पूजा की प्रथा सदियों से चली आ रही है। मान्यता है सृष्टि के निर्माण के
समय देवी सरस्वती बसंत पंचमी के दिन प्रकट हुई थीं अत: बसंत पंचमी को सरस्वती माता का जन्मदिन माना जाता है। सरस्वती माता का जन्मदिन मनाने के लिए ही माता के भक्त उनकी पूजा करते हैं। सृष्टि के निर्माण के समय सबसे पहले महालक्ष्मी देवी प्रकट हुईं। उन्होंने भगवान शिव, विष्णु एवं ब्रह्मा जी का आह्वान किया। जब ये तीनों देव उपस्थित हुए। देवी महालक्ष्मी ने तब तीनों देवों से अपने-अपने गुण के अनुसार देवियों को प्रकट करने का अनुरोध किया। भगवान शिव ने तमोगुण से महाकली को प्रकट किया, भगवान विष्णु को तथा ब्रह्मा जी ने सत्वगुण से देवी सरस्वती का आह्वान किया। जब ये तीनों देवी प्रकट हुईं तब जिन देवों ने जिन देवियों का आह्वान किया था उन्हें वह देवी सृष्टि संचालन हेतु महालक्ष्मी ने भेंट किया।
ब्रह्रा ने दिया वागेश्वरी नाम
मां सरस्वती का एक नाम वागेवश्वरी भी उन्हें यह नाम ब्रह्रा जी ने दिया था। सृष्टि का निर्माण के बाद ब्रह्मा जी ने जब अपनी बनाई सृष्टि मृत शरीर की भांति शांत दिखी। इसमें न तो कोई स्वर है और न वाणी। अपनी उदासीन सृष्टि को देखकर ब्रह्मा जी को अच्छा नहीं लगा। ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास गये और अपनी उदासीन सृष्टि के विषय में बताया। ब्रह्मा जी से तब भगवान विष्णु ने कहा कि देवी सरस्वती आपकी इस समस्या का समाधान कर सकती हैं। आप उनका आह्वान किया कीजिए उनकी वीणा के स्वर से आपकी सृष्टि में ध्वनि प्रवाहित होने लगेगी। भगवान विष्णु के कथनानुसार ब्रह्मा जी ने सरस्वती देवी का आह्वान किया। सरस्वती माता के प्रकट होने पर ब्रह्मा जी ने उन्हें अपनी वीणा से सृष्टि में स्वर भरने का अनुरोध किया। माता सरस्वती ने जैसे ही वीणा के तारों को छुआ उससे 'सा' शब्द फूट पड़ा। यह शब्द संगीत के सप्तसुरों में प्रथम सुर है। इस ध्वनि से ब्रह्मा जी की मूक सृष्टि में ध्वनि का संचार होने लगा। हवाओं को, सागर को, पशु-पक्षियों एवं अन्य जीवों को वाणी मिल गयी। नदियों से कलकल की ध्वनि फूटने लगी। इससे ब्रह्मा जी अति प्रसन्न हुए उन्होंने सरस्वती को वाणी की देवी के नाम से संबोधित करते हुए वागेश्वरी नाम दिया। माता सरस्वती का एक नाम यह भी है। सरस्वती माता के हाथों में वीणा होने के कारण इन्हें वीणापाणि भी कहा जाता है।
सरस्वती पूजा की विधि
आदर्शनगर के पंडित गीता मिश्रा बताते हैं कि सरस्वती पूजा करते समय सबसे पहले सरस्वती माता की प्रतिमा अथवा तस्वीर को सामने रखना चाहिए। इसके बाद कलश स्थापित करके गणेश जी तथा नवग्रह की विधिवत पूजा करनी चाहिए। इसके बाद माता सरस्वती की पूजा करें। सरस्वती माता की पूजा करते समय उन्हें सबसे पहले आचमन एवं स्नान कराएं। इसके बाद माता को फूल एवं माला चढ़ाएं। सरस्वती माता को सिन्दुर एवं अन्य श्रृंगार की वस्तुएं भी अर्पित करनी चाहिए। बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता के चरणों पर गुलाल भी अर्पित किया जाता है। देवी सरस्वती स्वेत वस्त्र धारण करती हैं अत: उन्हें स्वेत वस्त्र पहनाएं। सरस्वती पूजन के अवसर पर माता सरस्वती को पीले रंग का फल चढ़ाएं। प्रसाद के रूप में मौसमी फलों के अलावा बूंदिया अर्पित करना चाहिए। इस दिन सरस्वती माता को मालपुए एवं खीर का भी भोग लगाया जाता है। सरस्वती पूजा करने बाद सरस्वती माता के नाम से हवन करना चाहिए। हवन के लिए हवन कुंड अथवा भूमि पर सवा हाथ चारों तरफ नापकर एक निशान बना लेना चाहिए। इसे कुशा से साफ करके गंगा जल छिड़क कर पवित्र करने के बाद। आम क छोटी-छोटी लकड़ियों को अच्छी तरह बिछा लें और इस पर अग्नि प्रजज्वलित करें। हवन करते समय गणेश जी, नवग्रह के नाम से हवन करें। इसके बाद सरस्वती माता के नाम से हवन करना चाहिए। हवन के बाद सरस्वती माता की आरती करें और हवन का भभूत लगाएं। षष्टी तिथि को सुबह माता सरस्वती की पूजा करने के बाद उनका विसर्जन कर देना चाहिए।
क्या कहते हैं छात्र
छात्रा बॉबी अपराजिता ने कहा कि वे घर में मूर्ति स्थापित कर मां सरस्वती की पूजा अर्चना करती है। उनकी पूजा से मन को शांति मिलती है। छात्र गौरव का कहना है कि वह तीन वर्षों से घर में ही मां की तस्वीर रखकर पूजा अर्चना करता है। वह माता से विद्या बुद्धि मांगता है। पूजा के बाद ही अन्न जल ग्रहण करता है।
छात्रा शालू कुमारी कहती है कि वे अन्य छात्राओं के साथ मिलकर कई वर्षों से मां शारदे की पूजा अर्चना करती है। पूजा से आत्म विश्वास जगता है।
Comments
Post a Comment