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भारतीय प्रतिस्‍पर्धा आयोग – प्रति‍स्‍पर्धा कानून के प्रवर्तन के चार वर्ष 
         विशेष लेख
          सीसीआई
                   राजेन्‍द्र चौधरी*
      मुक्‍त एवं निष्‍पक्ष प्रतिस्‍पर्धा किसी भी सक्षम बाजार अर्थव्‍यवस्‍था के स्‍तंभों में से एक है। वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था में प्रतिस्‍पर्धा एक संचालक शक्ति बन गई है। मई 19, 2009 से भारत में व्‍यापार करने के प्रतिमान बदल गए। इस दिन भारत के प्रतिस्‍पर्धा आयोग द्वारा प्रतिस्‍पर्धा अधिनियम लागू किया गया। करीब चार वर्षों के संक्षिप्‍त अस्तित्‍व के दौरान सीसीआई ने उल्‍लेखनीय कार्य किए हैं। अस्तित्‍व अवधि कम होने के बावजूद प्रतिस्‍पर्धा कानून अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि यह आर्थिक विकास और आर्थिक कल्‍याण के बढ़ते स्‍तरों के लिए एक ब्‍लॉक का निर्माण करता है।

        भारत में प्रतिस्‍पर्धा कानून का क्रमि‍क विकास

      भारत विकासशील देशों में प्रथम है, जिसने 1969 में एकाधिकार एवं प्रतिबंधित व्‍यापार पद्धतियां (एमआरटीपी) अधिनियम के रूप में प्रतिस्‍पर्धा कानून बनाया। एमआरटीपी अधिनियम आर्थिक शक्ति के संकेंद्रण को रोकने,प्रतिबंधात्‍मक या अनुचित व्‍यापार पद्धतियों पर रोक लगाने और एकाधिकारों पर नियंत्रण करने के लिए तैयार किया गया था। इसके बाद वर्ष 1991 भारत के आर्थिक विकास में मील का पत्‍थर सिद्ध हुआ। नए भारत को नए नियमों की आवश्‍यकता थी। अत: नए प्रतिस्‍पर्धा कानून की आवश्‍यकता पड़ी। तदनुरूप 2002 में प्रतिस्‍पर्धा अधिनियम पारित किया गया और 2007 में संशोधित किया गया। भारतीय प्रतिस्‍पर्धा आयोग (सीसीआई) की स्‍थापना एक स्‍वायत्‍त निकाय के रूप में 1 मार्च, 2009 को की गई, जिसमें एक अध्‍यक्ष और छह सदस्‍य शामिल हैं। उच्‍चतम न्‍यायालय में अपील के लंबित रहते मई, 2009 में एक अपील निकाय के रूप में प्रतिस्‍पर्धा अपील न्‍यायाधिकरण भी स्‍थापित किया गया। तत्‍पश्‍चात एमआरटीपी अधिनियम निरस्‍त कर दिया गया। उस अधिनियम के अंतर्गत स्‍थापित एमआरटीपी आयोग को समाप्‍त कर दिया गया और बकाया मामले सीसीआई को हस्‍तांतरित कर दिए गए। विलय और अधिग्रहण संबंधी धाराएं 5 और 6 जून, 2011 में अधिसूचित की गईं।

         पिछले 4 वर्षों के दौरान गतिविधियां

      मई, 2009 में प्रतिस्‍पर्धा विरोधी समझौतों और प्रभुत्‍व के दुरुपयोग से संबंधित धाराएं 3 और 4 के प्रावधानों की अधिसूचना जारी होने के बाद से सीसीआई के विचारार्थ 350 से अधिक मामले सामने आए जिनमें से 260 से अधिक मामलों में अंतिम आदेश पारित किए जा चुके हैं। प्रवर्तन के रूपों में प्रतिस्‍पर्धा विरोधी व्‍यापक मुद्दे शामिल हैं, जैसे उत्‍पादक संघ, बोली बढ़ोतरी, प्रभुत्‍व का दुरुपयोग, बाजार पर्यन्‍त मुद्दे आदि।
      प्रतिस्‍पर्धा अधिनियम की धाराओं 5 और 6 के अंतर्गत 120 से अधिक नोटिस प्राप्‍त किए गए हैं और उनके निपटान की दर 95 प्रतिशत से अधिक रही है। सभी नोटिसों का निपटारा स्‍वनिर्धारित 30 दिन की समय-सीमा के भीतर किया गया जबकि कानून में नोटिसों के निपटान के लिए 210 दिन तक की अवधि की अनुमति है।

            सीसीआई के विभिन्‍न आदेशों के अंतर्गत कवर किए जाने वाले प्रमुख क्षेत्र

      इस अधिनियम के अंतर्गत किए जाने वाले विविध क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा, वित्‍त, मनोरंजन, आईटी, दूर संचार,नागर विमानन, ऊर्जा, बीमा, यात्राऑटमोबील मैन्‍युफैक्‍चरिंग, भू संपत्ति और फार्माफस्‍युटिकल्‍स आदि शामिल हैं।

      देश के आर्थिक विकास के लिए निर्माण उद्योग में सीमेंट एक महत्‍वपूर्ण निवेश है। सीसीआई ने 11 सीमेंट विनिर्माताओं और उनके व्‍यापार संगठन पर करीब 6700 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया क्‍योंकि वे एक उत्‍पादक संघ की तरह व्‍यवहार कर रहे थे।

      सीमेंट विनिर्माताओं और उनके व्‍यापार संगठन ने बाद में कोम्‍पैट में अपील करने का फैसला किया। कोम्‍पैट ने मामले की सुनवाई जारी रहते सीमेंट कंपनियों को सीसीआई द्वारा लगाए गए जुर्माने की 10 प्रतिशत राशि जमा कराने का आदेश दिया। देश में प्रतिस्‍पर्धा कानून के प्रवर्तन की प्रक्रिया में यह एक महत्‍वपूर्ण घटना है।

      इससे पहले, उपभोक्‍ताओं पर व्‍यापक प्रभाव डालने वाले एक अन्‍य मामले में आयोग ने भू संपत्ति व्‍यापार की एक बड़ी कम्‍पनी डीएलएफ पर करीब 630 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। यह पाया गया था कि डीएलएफ ने अपने प्रभुत्‍व का दुरुपयोग करते हुए अपार्टमेंट मालिकों पर मनमानी और अनुचित शर्तें लागू की थीं। बाद में सीसीआई ने एक आदेश जारी करते हुए कंपनियों द्वारा निवेशकों के साथ हस्‍ताक्षरित समझौते की कार्य शर्तों में संशोधन किया था ताकि विक्रेता और क्रेता के बीच उचित एवं पारदर्शी कार्य शर्तें सुनिश्चित की जा सकें। यह आदेश भू संपत्ति क्षेत्र में उपभोक्‍ताओं के हितों की दृष्‍ट‍ि से परिवर्तन का अग्रदूत सिद्ध हुआ।

              स्‍वत: संज्ञान कार्य

      सीसीआई प्राप्‍त सूचनाओं के आधार पर मामलों की सुनवाई और जांच के साथ साथ स्‍वत: संज्ञान लेते हुए भी कार्रवाई करता है। आयोग जहां कहीं सरसरी तौर पर प्रतिस्‍पर्धा अधिनियम का उल्‍लंघन महसूस करता है, वहां स्‍वयं संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करता है।
      2011 में इंडियन ऑयल कारपोरेशन को सिलेंडरों की आपूर्ति के लिए एलपीजी सिलेंडर विनिर्माताओं द्वारा बोलियों में कथित धांधली का स्‍वत: संज्ञान लि‍या। आयोग ने बोली में धांधली करने वाली पार्टियों पर 187 करोड़ रुपये से अधिक जुर्माना लगाया।
      सीसीआई द्वारा पेट्रोलियम क्षेत्र, कृषि क्षेत्र आदि में भी स्‍वत: संज्ञान लेते हुए कई और ऐसे नोटिस भेजे गए हैं।

        व्‍यापार संगठनों की भूमिका

      आयोग के प्रवर्तन संबंधी कार्य क्षेत्र में व्‍यापार संगठनों की भूमिका पर आधारित मामले भी अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण हैं। प्रतिस्‍पर्धा विरोधी समझौतों के मामलों को निपटाने में सीसीआई के अनुभव से पता चलता है कि व्‍यापार संगठन भी, अनजाने में या जान बूझ कर भूल चूक के ऐसे कार्यों में शामिल होते हैं, जो विभिन्‍न आर्थिक कानूनों के दायरे में आते हैं।

      प्रतिस्‍पर्धा कानून व्‍यापार संघों की गतिविधियों को प्रतियोगियों के बीच किसी अन्‍य प्रकार के सहयोग की तरह समझता है। प्रतिस्‍पर्धात्‍मक कानून की दृष्टि में व्‍यापार संघों के प्रस्‍तावों, निर्णयों या अनुशंसाओं को उसके सदस्‍यों के साथ समझौतों के रूप में देखा जाता है, और सदस्‍यों पर बाध्‍यकारी न होने की स्थिति में भी कानून भंग हो सकता है।

      व्‍यापार संघ के कार्यों के बारे में सीसीआई द्वारा पहली जांच फिल्‍म निर्माताओं के बारे में की गई थी। सीसीआई ने 27 फिल्‍म निर्माताओं पर, सांठगांठ के आरोपों की जांच करते हुए एक एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया। उन पर आरोप था कि वे संगठन के जरिए मल्‍टीप्‍लेक्‍स मालिकों का शोषण कर रहे हैं।

      फार्मास्‍युटिकल क्षेत्र/फिल्‍म निर्माण आदि में संगठनों से संबंधित अनेक मामलों में सीसीआई ने संगठनों के खिलाफ आदेश पारित किए हैं और उनसे कहा है कि वे प्रतिस्‍पर्धा विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाएं और उनसे बाज आएं

         सरकारी खरीद और प्रतिस्‍पर्धा कानून

सीसीआई के लिए महत्‍वपूर्ण मुद्दों में सरकारी खरीद के आयाम भी महत्‍वपूर्ण रहे हैं। सरकारी खरीद एक विवादित मुद्दा रहा है, और अनेक घटकों की वजह से प्रतिस्‍पर्धा कानून के दायरे में आता है। प्रतिस्‍पर्धा अधिनियम सार्वजनिक और निजी उद्यम के बीच कोई भेद नहीं करता। वास्‍तव में बड़े पैमाने पर खरीद करने वाले सरकारी उद्यम प्रतिस्‍पर्धा मूल्‍यांकन के अधीन आते हैं।

हाल के महीनों में, आयोग ने अनेक मामलों का निपटारा किया है। इनमें सरकारी ठेकों में व्‍यापार संघवाद के मामले शामिल हैं। प्रतिस्‍पर्धा पद्धतियों के उल्‍लंघन और प्रभुत्‍व के दुरुपयोग को हतोत्‍साहित करने के लिए जुर्माने लगाए गए। जांच के बाद आयोग ने जहां कहीं यह पाया कि सरकार की कुछ विशेष नीतियों में संशोधन की स्थिति में प्रतिस्‍पर्धा बढ़ सकती है, वहां आयोग ने सरकार को ऐसी नीतियों में बदलाव के सुझाव दिए।

ऐसे 21 से अधिक मामलों में आदेश पारित किए गए जहां एसओई या सरकारी विभाग एक पार्टी थे। इनमें से कुछ मामलों में तेल कंपनियां, रेलवे आदि शामिल थे।

सीसीआई सरकारी खरीद एजेंसियों के साथ मुद्दों को उठाता है और उसने 50 से अधिक मंत्रालयों/विभागों के नोडल अधिकारियों के साथ अनेक बार बातचीत की है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सरकारी खरीद में अपनाई जाने वाली पद्धतियां प्रतिस्‍पर्धा अधिनियम  की भावना के अक्षरश: अनुपालन के अनुरूप हों।

चार वर्ष की अवधि किसी नए कानून की कार्य क्षमता के मूल्‍यांकन के लिए बहुत कम होती है। फिर भी,पिछले चार वर्षों की गतिविधियों को देखने से पता चलता है कि भारत का प्रतिस्‍पर्धा आयोग बाजार में प्रतिस्‍पर्धा विरोधी पद्धतियों को रोकने वाले सजग संगठन के रूप में महत्‍वपूर्ण बदलाव लाने के लिए तैयार है। प्रतिस्‍पर्धा अधिनियम और प्रतिस्‍पर्धा का विकास भारत में धीरे धीरे लेकिन निश्चित रूप से अपनी सही मंजिल की ओर अग्रसर है।

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