‘ऐसा मालूम होता है कि साहित्य अधिक से अधिक औरतों के क्रिया-कलाप की चीज हो गयी है।
पुस्तक की दुकानों में, किसी सम्मेलन में या लेखकों के सार्वजनिक पठन में और मानविकी के लिए समर्पित विश्वविद्यालय के विभागों में भी स्त्रियाँ स्पष्ट रूप से पुरुषों से आगे निकल जाती हैं।’
पुस्तक की दुकानों में, किसी सम्मेलन में या लेखकों के सार्वजनिक पठन में और मानविकी के लिए समर्पित विश्वविद्यालय के विभागों में भी स्त्रियाँ स्पष्ट रूप से पुरुषों से आगे निकल जाती हैं।’
हो सकता है कि पेरू के प्रख्यात लेखक और वर्ष 2010 के साहित्य श्रेणी के नोबेल पुरस्कार विजेता मारिओ वर्गास लोसा का यह कथन कुछ लोगों को अतिरंजित अथवा हकीकत से परे लग रहा हो। इसका कारण यह है कि भारतीय समाज की बुनावट पेरू से सर्वथा भिन्न है। शैक्षिक ही नहीं अगर हम आर्थिक दृष्टिकोण से भी देखें, तो दोनों समाजों के बीच काफी अंतर देखा जा सकता है। लेकिन जब हम मुद्रित साहित्य की दुनिया से निकलकर ऑनलाइन दुनिया में आते हैं, तो मारिओ के इस कथन का मतलब साफ-साफ समझ में आता है।
21 अप्रैल 2003 को आलोक कुमार द्वारा ‘नौ दो ग्यारह’ नाम से हिन्दी का पहला ब्लॉग बनाए जाने के बाद से भले ही किसी और ने इसकी उपयोगिता को समझा हो अथवा नहीं, महिला लेखिकाओं ने इसकी पहुँच को समझने और उसे भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यही कारण है कि हिन्दी की सफल महिला ब्लॉगर्स की सूची दिनों-दिन बहुत तेजी से बढ़ रही है।
वैसे तो इंटरनेट के रथ पर सवार ‘ऑनलाइन डायरी’ के रूप में विकसित हुए ब्लॉग जगत में दूर से देखने पर आज भी पुरूषों का वर्चस्व दिखाई पड़ता है, लेकिन यदि गहराई से देखा जाए, तो बिना शोर-शराबा किए पूरी गम्भीरता के साथ लगातार काम करने वाले ब्लॉगर्स में महिलाओं का प्रतिशत अच्छा खासा है। दिलचस्पी की बात यह है कि यह प्रतिशत प्रिंट मीडिया के मुकाबले कहीं ज्यादा है। भले ही प्रिंट जगत के धुरंधर ऑनलाइन साहित्य को ‘कचरा साहित्य’ घोषित करके अपनी अज्ञानता और बहुत हद तक दम्भीपन का प्रदर्शन कर रहे हों, पर महिला लेखिकाएँ उन सबकी परवाह किए बिना लगातार अपना काम कर रही हैं और बेहतर ढंग से कर रही हैं।
कुछ लोगों के लिए यह सूचना आश्चर्यजनक हो सकती है कि हिन्दी में लिखे जाने वाले ब्लॉगों में (यदि विवादित विषयों को एक किनारे कर दिया जाए) सर्वाधिक ट्राफिक पाने वालों में ही नहीं, सर्वाधिक टिप्पणियाँ पाने वालों में भी महिलाओं की संख्या पिछले कुछ एक सालों में आश्चर्यजनक ढ़ंग से बढ़ी है। महिलाओं के ब्लॉगों का गहराई से निरीक्षण करने से यह पता चलता है कि उनकी दुनिया अब सिर्फ चूल्हे-चौके, सास-बहू सम्बंधों अथवा स्वेटर की डिजाइन तक सीमित नहीं रही। बेशक उनकी लेखनी में संवेदनाओं, मानवीय सम्बंधों और स्त्री पीड़ा को सर्वाधिक जगह मिली है, लेकिन आज वे विषयगत विविधता के स्तर पर न तो किसी से पीछे हैं और न ही पिछड़ी हुई। वे अपने आसपास के समाज को गहराई से निरख रही हैं, समकालीन राजनीति को सूक्ष्मता से परख रही हैं और विज्ञान, तकनीक, भाषा तथा सामुदायिक विद्रूपताओं पर भी अपने वक्तव्य खुले मन से रख रही हैं।
ऑनलाइन साहित्य की दुनिया का गहन अध्ययन करने पर पता चलता है कि कुछ लोग जहाँ रिटायरमेंट के बाद अपने समय के सदुपयोग की दृष्टि से अपनी ऊर्जा यहाँ खपा रहे हैं, वहीं कुछ लोग कहीं और कुछ खास न कर पाने के कारण ब्लॉग जगत में आ रहे हैं। पर संयोग से ज्यादातर महिलाएँ इन श्रेणियों में नहीं आतीं हैं। ब्लॉग की दुनिया उन्हें इसलिए आकर्षित कर रही हैं, क्योंकि यह सहज ढंग से सुलभ है, सम्पादकीय तानाशाही से रहित है और प्रेषण तथा प्रकाशन के दौरान होने वाले कष्टप्रद इंतजार से सर्वथा मुक्त है। और इसके साथ ही साथ एक कारण यह भी है कि यह ईमल लिखने की तरह आसान और वेबसाइट बनाने की तुलना में पूरी तरह से मुफ्त भी है। यही कारण्ा है कि स्त्री रचनाकार अपने पूरे दमखम के साथ ब्लॉग की दुनिया में उतर आई हैं और भरपूर उत्साह के साथ ऑनलाइन साहित्य रच रही हैं। वे अपने भीतर के द्वन्द्वों से मुक्ति पाने के लिए लिख रही हैं, अपने वजूद को बचाने के लिए लिख रही हैं, अपने स्वप्नों को पंख लगाने के लिए लिख रही हैं, अपनी बहनों को सोते से जगाने के लिए लिख रही है और एक बेहतर समाज बनाने के लिए भी लिख रही हैं।
हालाँकि कहने वाले यह भी कहते हैं कि इस माध्यम के पाठक कितने हैं? पर ऐसा भी नहीं है कि यह सब लिखा-पढ़ा व्यर्थ ही जा रहा है। वेबसाइट की रेटिंग बताने वाली कंपनी एलेक्सा (डॉट कॉम) के आँकड़े, गूगल का स्टेटिक्स और पाठकों की प्रतिक्रियाएँ यह साबित करने के लिए कॉफी हैं कि किसी औसत संख्या वाली साहित्यिक पत्रिका की तुलना में ब्लॉग 19 नहीं बल्कि बीस ही बैठते हैं, कारण यह सदा उपलब्ध रहता है और विश्व के किसी भी कोने में पढ़ा जा सकता है। यही कारण है कि शहर और देश की सीमा के परे जाकर न सिर्फ महिलाएँ लिख रही हैं, वरन लोग उस लिखे को पढ़ भी रहे हैं। और लिखा हुआ सिर्फ पढ़ा ही नहीं जा रहा, उसपर वाद-प्रतिवाद भी हो रहे हैं, बहस-मुबाहिसे चल रहे हैं और सबसे ज्यादा सार्थक यह कि इसी बहाने लोगों की मानसिकताएँ सामने आ रही हैं। आमतौर से पुरूष या बल्कि यूँ कहें कि अधिनायकवादी चालाक पुरूष अपनी सोच को सात तालों के भीतर छिपा कर रखने के लिए जाना जाता है। लेकिन जब ऐसी बहसें चलती हैं, तो उसके मन की बातें छींक की तरह न चाहते हुए भी पूरे वेग से बाहर आ जाती है। समझदार महिला ब्लॉगर्स इनसे सीख रही हैं, पुरूषों की रणनीतियों को समझ रही हैं, अपनी सोच को परिपक्व बना रही हैं, और सबसे बड़ी बात यह कि वे इस माध्यम में आने वाली नई लेखिकाओं को जागरूक कर रही हैं, अच्छे और बुरे लोगों को समझने का भरपूर मौका प्रदान कर रही हैं।
क्या हैं ऑनलाइन साहित्य के प्रति रूझान की वजहें?
सूचना प्रौद्योगिकी की क्रान्ति ने जिस प्रकार से पूरी दुनिया को एक इलेक्ट्रानिक गजेट में समेट दिया है, उससे मध्य वर्ग और विशेषकर आधी दुनिया की सोच में जबरदस्त बदलाव आया है। पहले की तुलना में अब वह दीन-दुनिया से बाखबर रहने लगी है, उसकी गतिविधियों में रूचि लेने लगी है और अपनी अभिव्यक्ति को मुखरता प्रदान करने के लिए सजग हो उठी है। यही कारण है कि वह पत्र-पत्रिकाओं और उससे भी कहीं ज्यादा इंटरनेट के करीब आ रही है।
साहित्य में बढ़ते हुए महिलाओं के इस दखल के कारणों को रेखाँकित करने के दौरान अक्सर लोग यह कहते हुए पाए जाते हैं कि चूँकि मध्यमवर्ग की स्त्रियाँ पुरुषों की तुलना में कम काम करती हैं इसलिए उनके पास पढ़ने/लिखने के ज्यादा अवसर होते हैं। इसीलिए वे मुद्रित साहित्य और विशेषकर ऑनलाइन दुनिया में जोरदार ढ़ग से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। इस तर्क के बचकानेपन को भुला कर यदि आगे बढ़ने का उपक्रम किया भी जाए, तो भी यह सवाल दिमाग के किसी खाँचे में अटका सा रह जाता है कि आखिर क्या कारण हैं जो महिला रचनाकार मुद्रित साहित्य की तुलना में ऑनलाइन दुनिया में ज्यादा नजर आ रही रही हैं?
इसका जवाब पाने के लिए हमें 2007 के आसपास के समय में जाना होगा, जब हिन्दी ब्लॉग के बारे में लोग ज्यादा नहीं जानते थे। उस दौरान ब्लॉगिंग की जानकारी को लोगों तक पहुँचाने के लिए कुछ इंटरनेट प्रेमियों ने मिलकर ‘सर्वज्ञ चिट्ठा ज्ञानकोष’ नाम का एक विकी बनाया था, जिसमें ‘मेकिंग ए हिन्दी ब्लॉग’ श्रृंखला के अन्तर्गत ब्लॉग बनाने के बारे में चरणबद्ध तरीके से बताया गया था। इसके साथ ही साथ वहाँ पर एक नारा भी दिया गया था- ‘विचारों को प्रवाहित होने से रोकिये मत। उन्हें दूसरों के साथ बाँटिये और दिखा दीजिये दुनिया को कि आप के अन्दर भी एक प्रतिभावान लेखक मौजूद है और आप भी अपने विचारों को प्रभावशाली तरीके से रख सकते हैं।’
जाहिर सी बात है अभिव्यक्ति के इस अंदाज ने महिला ब्लॉगर्स को सर्वाधिक आकर्षित किया है। उन्होंने अलमारियों में कैद करके रखी गयी आपनी पुरानी डायरियाँ निकाल लीं और उन्हें पूरी दुनिया में प्रसारित कर दिया। यहाँ पर न तो उसके लिखे पर ‘अनगढ़’ और ‘नौसिखिया’ का ठप्पा लगाकर उसे रिजेक्ट करने वाले सम्पादक थे और न मठाधीशी करने वाले स्थापित लेखक। उल्टे ब्लॉग जगत को प्रमोट करने के उद्देश्य से यहाँ सक्रिय लेखकों ने नवोदित रचनाकारों का जिस तरीके से हौसला अफजाई की संस्कृति विकसित की, उससे देखते ही देखते महिला रचनाकारों की एक पूरी जमात तैयार हो गयी। यह एक तरह से अभिव्यक्ति के विस्फोट की तरह है, जिसकी सफलता देखकर शेष दुनिया के लोग ही नहीं कुछ-कुछ इससे जुड़ी हुई महिलाएँ भी आश्चर्यचकित नजर आती हैं।
भले ही साहित्य के लम्बरदार आधी दुनिया के इस रचनात्मक अभ्युदय की प्रतिक्रिया स्वरूप कुछ भी कहते रहें, पर उन सबसे बेपरवाह आधी दुनिया अपने जज्बों को लफ्जों के पंख देने में पूरी शिद्दत से व्यस्त है। उनका यह जुनून, उनकी यह ऊर्जा देखकर कहा जा सकता है कि वे पूरी शिद्दत के साथ अपना सृजनात्मक संसार को रच रही हैं। बकौल प्रतिभा कटियार ‘मेरे लिए लिखना कोई लग्जरी नहीं, एक गहन पीड़ा से गुजरकर सुंदर संसार का सपना देखने के समान है।’ वे इसलिए लिखती हैं, जिससे अपने भीतर जमा हुई इस ऊर्जा से किसी को प्रेरित कर सकें, किसी की आँखों में विश्वास की, साहस की, प्रेम की इबारत लिख सकें। शायद यही कारण है उनका और उन जैसी तमाम महिला ब्लॉगर्स का लिखना दिल को छू जाता है। यही कारण है कि उनकी लेखनी पाठकों को बुलाती है, और बदले में अपनी लेखिका को टिप्पणी के रूप में ढ़ेर सारा प्यार-दुलार भी दिलाती है।
विस्तृत है विषय का दायरा:
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह जिस माहौल में रहता है, जैसा देखता, पढ़ता व सुनता है, वैसे ही विचार उसके मस्तिष्क में प्रस्फुटित होते हैं। यही कारण है कि शुरूआती दौर में महिला साहित्यकारों की दुनिया ज्यादातर घर परिवार और पास-पड़ोस की सीमाओं में कैद रहती है। लेकिन जैसे-जैसे उनकी समझ विकसित होती है, उनकी लेखनी परिपक्व होती है, वैसे-वैसे उसका दायरा बढ़ता जाता है, उसकी रचनाओं का स्तर ऊँचा उठता जाता है।
यह कोई कहने-सुनने की बात नहीं कि स्त्री को सदियों से दबाया गया है, उसका शोषण किया गया है। यही कारण है कि जब एक परिपक्व महिला ब्लॉगर की लेखनी मुखर होती है, तो उसमें नारी मुक्ति की आवाज स्पष्ट रूप से सुनी जा सकती है। सुजाता, कविता वाचक्नवी, रचना, पूर्णिमा वर्मन, घुघुती बासूती, आराधना चतुर्वेदी, निर्मला कपिला, वंदना गुप्ता, रंजना भाटिया, अल्पना वर्मा, रश्मि प्रभा, स्वप्न मंजूषा अदा, हरकीरत हीर, पद्मजा, सारिका, नीलिमा, अनीता कुमार, रिचा, मनविंदर, सुशीला पुरी, उषा राय, मीनू खरे, फिरदौस खान, प्रत्यक्षा, प्रतिभा कटियार, पारूल, पल्लवी त्रिवेदी, बेजी, शेफाली पाण्डे, दिव्या श्रीवास्तव, मीनाक्षी, आकांक्षा यादव, कीर्ति वैद्य, प्रीती टेलर, पूनम मिश्रा, नीलिमा सुखीजा अरोरा, आर. अनुराधा, सोनल रस्तोगी, ममता, अजित गुप्ता, स्मृति दुबे, नूतन नीति, मनीषा पाण्डे, अर्चना, शायदा, शिखा वार्ष्णेय, सीमा गुप्ता, रेखा श्रीवास्तव, किरण मिश्रा जैसे सैकड़ों नाम हैं, जो इस क्षेत्र में पूरी निष्ठा से सक्रिय हैं और अपनी समर्थ लेखनी के द्वारा अपनी आवाज को बुलंद कर रहे हैं।
बात चाहे कविता/कहानी की हो रही हो, या फिर किसी समसामयिक घटना की, यदि रचनाकार दृष्टि सम्पन्न है, तो उसका तेज रचना में झिलमिला ही जाता है। ‘बियाण्ड द सेक्स’ (स्त्री विमर्श) पर प्रकाशित सुधा अरोड़ा की कविता‘कम से कम एक दरवाजा’ में इस दृष्टि को साफ-साफ देख जा सकता है- ‘वह घर 'घर' होता है/जहाँ माँ बाप की रजामंदी के बगैर/अपने प्रेमी के साथ भागी हुई लड़की से/माता पिता कह सकें-/जानते हैं-तुमने गलत निर्णय लिया/फिर भी हमारी यही दुआ है/खुश रहो उसके साथ/जिसे तुमने चुना है।/पर यह मत भूलना, कभी यह निर्णय भारी पड़े/और पाँव लौटने को मुड़े/तो यह दरवाज़ा तुम्हारे लिए खुला है।/बेटियाँ कभी ‘डेड एंड’ पर न पहुँचें/कम से कम एक दरवाज़ा/हमेशा खुला रहे उनके लिए।’
लेकिन ब्लॉग पर आने वाला हर स्वर इतना विनम्र भी नहीं होता। लगातार उपेक्षा और शोषण के कारण नारी के भीतर दबी हुई क्रोध की चिंगारी अक्सर अपने पूरे तेज के साथ बाहर आती है। और ऐसे में स्वर न चाहते हुए भी तीक्ष्ण हो ही जाता है। ‘नारी’ ब्लॉग की मॉडरेटर रचना इस तीक्ष्णता के लिए पूरे ब्लॉग जगत में चर्चित हैं। शायद यही कारण है कि वे यदा-कदा पूछ बैठती हैं- ‘हे नर, क्यों आज भी इतने कमजोर हो तुम/कि नारी को हथियार बना कर/अपने आपसी द्वेषों को निपटाते हो?/क्यों आज भी इतने निर्बल हो तुम/कि नारी शरीर कि/संरचना को बखाने बिना/साहित्यकार नहीं समझे जाते हो तुम/तुम लिखो तो जागरूक हो तुम/वह लिखे तो बेशर्म औरत कहते हो/तुम सड़को को सार्वजनिक शौचालय बनाओ, तो जरुरत तुम्हारी है/वह फैशन वीक मे काम करे/तो नंगी नाच रही है/तुम्हारी तारीफ हो, तो तुम तारीफ के काबिल हो/उसकी तारीफ हो, तो वह ‘औरत’ की तारीफ है/तुम करो तो बलात्कार भी ‘काम’ है/वह वेश्या बने तो बदनाम है/हे नर, क्यों आज भी इतने कमजोर हो तुम?’
पूछने वाले पूछ सकते हैं कि इस सबसे ये हासिल क्या करना चाहती हैं? ‘नारीवादी बहस’ की मॉडरेटर आराधना चतुर्वेदी ‘मुक्ति’ ऐसे सवालों का जवाब बहुत ही समज ढ़ंग से देती हैं- ‘नारी होने के नाते जो झेला और महसूस किया,उसे शब्दों में ढालने का प्रयास कर रही हूँ। चाह है, दुनिया औरतों के लिए बेहतर और सुरक्षित बने।’ उनके इस स्वर से स्वर मिलाते हुए घुघूती बासूती इस बात को और ज्यादा साफ बनाती हैं, ‘मुझे किसी पुरुष से कोई शिकायत नहीं है। केवल एक सुन्दर बराबरी के समाज की कल्पना भर करना चाहती हूँ, जहाँ स्त्रियाँ ना पूजी जाएँ ना दुत्कारी जाएँ। न हमें देवी बनना है न प्रतिमा, केवल व्यक्ति बनकर रहना है। क्या यह बहुत बड़ी माँग है?’
ऐसा नहीं है कि सिर्फ कविता/कहानी और नारी चेतना ही आधी दुनिया के ब्लॉगों में नजर आती है, आमतौर से ऐसा शायद ही कोई विषय हो, जिसपर महिला ब्लॉगर्स की नजर न गयी हो। चाहे गीत-संगीत हो अथवा समसामयिक घटनाओं पर प्रतिक्रिया, अथवा ज्ञान-विज्ञान हो या फिर स्वास्थ्य का मुद्दा, महिला रचनाकारों ने अपने पोस्टों के द्वारा हर विषय को छुआ है और उसपर सकारत्मक ढंग से लेखनी चलाकर न सिर्फ अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है, वरन ब्लॉग जगत की सामग्री को भी विविधतपूर्ण बनाया है। यही कारण है कि ब्लॉग में स्थापित होने के बाद महिलाओं में एक नया आत्मविश्वास आ रहा है, और दिन प्रतिदिन उनका रचनात्मक दायरा बढ़ता जा रहा है।
हिन्दी की महत्वपूर्ण महिला ब्लॉगर्स
अल्पना वर्मा: हिन्दी की सर्वाधिक विविध विषयक लेखन करने वाले ब्लॉगरों में अल्पना वर्मा का नाम सर्वोपरि है। उनका मूल ब्लॉग ‘व्योम के पार’ (http://alpana-verma.blogspot.com) के नाम से जाना जाता है। इसके साथ ही साथ वे भारत के पर्यटन स्थलों पर केन्द्रित ब्लॉग ‘भारत दर्शन’ (http://bharatparytan.blogspot.com), गीत-संगीत के ब्लॉग ‘गुनगुनाती धूप’ (http://merekuchhgeet.blogspot.com) एवं विज्ञान संचार के ब्लॉग ‘साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन’ (http://sb.samwaad.com) पर भी लेखन करती हैं और अपनी प्रतिभा से सबको चमत्कृत करती रहती हैं।
आर. अनुराधा: भारतीय सूचना सेवा से जुड़ी हुई अनुराधा वर्ष 2007 से ब्लॉग जगत पर सक्रिय हैं। वे ‘इन्द्रधनुष’(http://ranuradha.blogspot.com) ब्लॅग के माध्यम से कैंसर के प्रति जागरूरकता का प्रसार कर रही हैं। इसके अतिरिक्त वे नारी चेतना के ब्लॉग ‘चोखेर बाली’ (http://sandoftheeye.blogspot.com) से भी सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं।
आराधना चतुर्वेदी ‘मुक्ति’: आराधना यूँ तो अपने नाम ‘आराधना’ (http://draradhana.wordpress.com) पर ही अपना ब्लॉग चलाती हैं, जोकि वर्डप्रेस पर स्थापित है, पर वे मुख्य रूप से नारीवाद पर केन्द्रित अपने ब्लॉग‘नारीवादी बहस’ (http://feminist-poems-articles.blogspot.com) के लिए जानी जाती हैं। उनके अनुसार यह ब्लॉग नारीवादी सिद्धाँतों की साधारण शब्दों में व्याख्या के लिए सृजित किया गया है।
कविता वाचक्नवी: कविता वाचक्नवी हिन्दी की एक सशक्त लेखिका हैं और अपनी चर्चित पुस्तकों और हिन्दी भाषा के प्रति अपनी गहन निष्ठा के लिए जानी जाती हैं। वे हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए संस्थात्मक और ब्लॉगर दोनों रूपों में सक्रियता बनाए रखती हैं। ‘हिन्दी भारत’ (http://hindibharat.blogspot.com) उनका चर्चित ब्लॉग है। इसके अतिरिक्त वे नारी चेतना पर केन्द्रित ‘बियाण्ड द सेक्स-स्त्री विमर्श’ (http://streevimarsh.blogspot.com) के संचालक के रूप में भी जानी जाती हैं।
घुघूती बासूती: घुघूती कुमायूँ क्षेत्रों में पायी जानी वाली एक सुंदर चिडिया होती है, जिसका वहाँ के लोकगीतों में विशेष स्थान है। उस चिडिया और कुमाऊँनी लोक संस्कृति से गहरे लगाव के कारण घुघूती बासूती ने इस उप नाम को ग्रहण किया है। यही उनके ब्लॉग का नाम (http://ghughutibasuti.blogspot.com) भी है। घुघूती वर्ष 2007 से ब्लॉग जगत में सक्रिय हैं और नारीवादी चिंतन को लेकर गम्भीर काम कर रही हैं।
नीलिमा सुखीजा अरोरा: नीलिमा भी हिन्दी की उन प्रारम्भिक महिला ब्लॉगरों में से हैं, जो आज भी सक्रिय हैं। उनके ब्लॉग का नाम है ‘मुझे कुछ कहना है’ (http://neelima-mujhekuchkehnahai.blogspot.com), जिसपर वे समाज के जुड़े हुए मुद्दों पर खुल कर लिख रही हैं। इसके अतिरिक्त वे ‘चोखेरवाली’ ब्लॉग पर भी नियमित रूप से अपनी सक्रियता बनाए रखने के लिए जानी जाती हैं।
पूर्णिमा बर्मन: पूर्णिमा बर्मन उन हिन्दी प्रेमियों में से हैं, जिन्होंने इंटरनेट पर हिन्दी को स्थापित करने के लिए जी-तोड़ मेहनत की है। हिन्दी विकीपीडिया ही नहीं, इंटरनेट पत्रिकाओं 'अभिव्यक्ति' (http://www.abhivyakti-hindi.org) और 'अनुभूति' (http://www.anubhuti-hindi.org) के द्वारा भी उन्होंने ऑनलाइन हिन्दी सेवा का कार्य किया है। इसके अतिरिक्त वे अपने ब्लॉग ‘चोंच में आकाश’ (http://purnimavarman.blogspot.com) के द्वारा भी हिन्दी सेवा का कार्य करती रहती हैं।
प्रत्यक्षा: प्रत्यक्षा ब्लॉग जगत की उन रचनाकारों में से हैं, जिन्होंने ब्लॉग जगत के बाहर भी पर्याप्त ख्याति बटोरी है। वे साहित्य जगत में एक कहानीकार के रूप में पहचानी जाती हैं और अपने ब्लॉग ‘प्रत्यक्षा’(http://pratyaksha.blogspot.com) के द्वारा ब्लॉग जगत में अपनी बात रखती हैं। इसके अतिरिक्त ‘चोखेरबाली’ब्लॉग की भी वे नियमित लेखिका हैं।
फिरदौस खान: उर्दू, हिन्दी और पंजाबी भाषा में समान रूप से ब्लॉग लेखन करने वाली फिरदौस खान वर्ष 2007 से ही ब्लॉग जगत में सक्रिय हैं। वे मूलरूप से पत्रकार हैं और अपनी प्रखर लेखनी के लिए ब्लॉग जगत में जानी जाती हैं। हिन्दी में वे ‘मेरी डायरी’ (http://firdaus-firdaus.blogspot.com) नाम से ब्लॉग लिखती हैं और‘चोखेरबाली’ पर भी समान रूप से सक्रिय रहती हैं।
डॉ0 बेजी जयसन: डॉ0 बेजी जयसन एक धीर गम्भीर ब्लॉगर हैं। सूरत की रहने वाली बेजी हिन्दी की इकलौती ऐसी ब्लॉगर हैं, जो मेडिकल विषयों पर अपनी कलम चलाती हैं। वे हिन्दी की प्रारम्भिक ब्लॉगर्स में से एक हैं और वर्ष 2006 से ब्लॉग जगत में सतत रूप से सक्रिय हैं। ‘दृष्टिकोण’ (http://beji-viewpoint.blogspot.com) और‘स्पंदन’ (http://drbejisdesk.blogspot.com) उनके दो चर्चित ब्लॉग हैं।
रचना: रचना ‘नारी’ (http://indianwomanhasarrived.blogspot.com) ब्लॉग की नियंत्रक हैं। यह हिन्दी का इकलौता ब्लॉग है, जिसकी सदस्य सिर्फ नारियाँ ही हो सकती हैं। रचना नारीवादी सोच की मुखर वक्ता हैं और अक्सर विवादों में उलझने के लिए भी जानी जाती हैं। उनके ब्लॉग का उद्घोष है: नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादीख़ुद अर्जित की। हाँ, आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं। कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप। आप ख़ुद भी किसीकी प्रेरणा हो सकती हैं। कुछ ऐसा तो जरुर किया है आपने, भी उसे बाटें।
रेखा श्रीवास्तव: कानपुर आई.आई.टी. में मशीन अनुवाद प्रोजेक्ट से जुड़ीं रेखा श्रीवास्तव एक सक्रिय ब्लॉगर हैं। वे‘लखनऊ ब्लॉगर्स एसोसिएशन’ की अध्यक्ष हैं और अनेक ब्लॉगों पर नियमित रूप से सृजनात्मक लेखन करती रहती हैं। उनके चर्चित ब्लॉगों के नाम हैं: ‘मेरा सरोकार’ (http://merasarokar.blogspot.com) ‘यथार्थ’(http://kriwija.blogspot.com) एवं ‘मेरी सोच’ (http://rekha-srivastava.blogspot.com)।
संगीता पुरी: अर्थशास्त्र में परास्नातक होने के बावजूद संगीता पुरी ज्योतिष में रूचि रखती हैं। वे ज्योतिष की गम्भीर अध्येता हैं और उससे जुड़े अंधविश्वासों को दूर करके उसके वैज्ञानिक तथ्यों को निकालने के लिए कृत संकल्प रहती हैं। यूँ तो वे ज्योतिष से जुड़े कई ब्लॉग लिखती हैं, पर ‘गत्यात्मक ज्योतिष’(http://www.gatyatmakjyotish.com) उनका मुख्य ब्लॉग है।
सुजाता: सुजाता नारीवादी विमर्श पर केन्द्रित हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग ‘चोखेरबाली’(http://sandoftheeye.blogspot.com) की नियंत्रक हैं। ‘चोखेरबाली’ हिन्दी का पहला सामुहिक ब्लॉग है, जहाँ पर नारीवाद से जुड़े विषयों पर पुरूष और महिला लेखक खुलकर अपनी बात रखते हैं और उसपर बहस करते हैं। इसके अलावा ‘नोटपैड’ (http://bakalamkhud.blogspot.com/) सुजाता का व्यक्तिगत ब्लॉग है, जिसपर वे अपनी कविताएँ, दैनिक जीवन की घटनाएँ तथा यात्रा संस्मरणों को साझा करती हैं।
हरकीरत ‘हीर’: हरकीरत हीर अपनी कविताओं के लिए जानी जाती हैं। वे हिन्दी और पंजाबी में समान रूप से लिखती हैं और दोनों भाषाओं में समान रूप से ब्लॉग चलाती हैं। उनके हिन्दी के ब्लॉग का नाम ‘हरकीरत हीर’ (http://harkirathaqeer.blogspot.com) ही है। इसके अतिरिक्त ‘अनुवाद कार्य’ (http://haqeerrachnaya.blogspot.com) नाम से वे एक अन्य ब्लॉग भी लिखती हैं, जिसमें वे पंजाबी रचनाओं के हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत करती हैं।
(सूची वर्णक्रम के अनुसार है।)
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