विकास कुमार
प्रस्तावित मिथिला राज्य की घोषित राजधानी दरभंगा होने के कारण मिथिलांचल का दरभंगा लोस क्षेत्र बिहार की राजनीति में एक विशिष्ट स्थान रखता है। दरभंगा लोस का प्रतिनिधित्व बड़े-बड़े नामचीन एवं कद्दावर नेताओं ने किया है जिसमें सत्यनारायण सिन्हा (1967), बिनोदानंद झा (1971), ललित नारायण मिश्र (1971), आचार्य सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ (1977), हरिनाथ मिश्र (1980), विजय कुमार मिश्र (1984), सकीलुर रहमान (1989), अली अशरफ फातमी (1996, 1998 एवं 2004) एवं निवत्र्तमान सांसद कीर्ति झा आजाद (1999 एवं 2009) शामिल हैं। इनमें से राष्ट्रीय जनता दल के अली अशरफ फातमी को अब तक सबसे अधिक तीन बार यहां का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है। वत्र्तमान सांसद भाजपा के कीर्ति झा आजाद भी दो बार यहां से जीत का स्वाद चख चुके हैं। इस लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत गौड़ा बौराम, बेनीपुर, अलीनगर, दरभंगा, दरभंगा ग्रामीण एवं बहादुरपुर विधानसभा क्षेत्र आते हैं।
बागमती नदी के किनारे बसा दरभंगा एक जिला एवं प्रमंडल मुख्यालय है। दरभंगा प्रमंडल के अंतर्गत तीन जिले दरभंगा, मधुबनी, एवं समस्तीपुर आते हैं। दरभंगा के उत्तर में मधुबनी, दक्षिण में समस्तीपुर, पूर्व में सहरसा एवं पश्चिम में मुजफ्फरपुर तथा सीतामढी जिला है। अपनी प्राचीन संस्कृति और बौद्धिक परंपरा के लिये यह शहर विख्यात रहा है। इसके अलावे यह जिला आम और मखाना के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के लोगों के खान-पान एवं विद्या प्रेम पर मैथिली में प्रचलित एक कहावत दरभंगा की संस्कृति को अच्छी तरह बयान करता है- पग-पग पोखर, पान मखान, सरस बोल, मुस्की मुस्कान, विद्या-वैभव शांति प्रतीक, ललित नगर दरभंगा थिक!!
दरभंगा लोस निर्वाचन क्षेत्र में आगामी चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। इस बार दो पुराने सहयोगी दल भाजपा एवं जद यू. अपने अपने बूते चुनाव लड़ेगें जिससे कि मिथिलांचल में लम्बे समय से चले आ रहा चुनावी समीकरण के ध्वस्त हो जाने की उम्मीद की जा रही है। बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति में जद यू. की उम्मीदवारी से भाजपा को अपना सीट बरकरार रखने हेतु यहां का चुनाव गंभीरतापूर्वक लड़ना होगा। छोटी सी भी चुनावी लारपवाही से भाजपा यहां मुश्किल में फंस सकती है क्योंकि कभी भाजपा में रहकर जद यू. नेता एवं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से दोस्ती की पींगे बढ़ानेवाले कद्दावर नेता संजय झा ने भाजपा को अलविदा कहते हुए जद यू. का दामन थाम लिया और दरभंगा से आगामी लोस चुनाव लड़ने की मंशा रखते हैं। कहने को तो संजय झा ने भाजपा को अलविदा की दिया है लेकिन वे यहां भाजपा के संगठन की सारी खूबी एवं खामी से भी परिचित है जिसका फायदा उन्हें जद यू. की उम्मीदवारी मिलने के बाद मिल सकता है। क्योंकि चर्चा है कि इस लोकसभा क्षेत्र के में भाजपा के कई बड़े कर्ताधर्ता के तार आज भी संजय झा से जुड़े हैं और उन्हें जिला भाजपा के अंदरखाने के हर महत्वपूर्ण गतिविधियों की जानकारी रहती है। बिहार के मुख्यमंत्री के करीबी लोगों में एक श्री झा के बारे में लोग कहते हैं कि दरभंगा से लोकसभा चुनाव लड़ने की मंशा से ही उन्होने भाजपा का साथ छोड़ा है क्योंकि कीर्ति आजाद का टिकट काटना भाजपा के लिए आसान नहीं है। वहीं राजद के लिए भी यहां का चुनाव परिणाम बड़े मायने रखता है क्योंकि पूर्व में पार्टी का यहां बेहतर प्रदर्शन करने का रिकार्ड रहा है। मो. अली अशरफ फातमी यहां से तीन बार संसद की सैर करते हुए केन्द्र में मंत्री पद को सुशोभित कर चुके हैं। इस लोकसभा क्षेत्र की 36 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है इसलिये राजद का ‘एमवाई’ समीकरण यहां खूब चला है। वर्ष 2009 के चुनाव में यहां दूसरे स्थान पर रहे राजद के अली अशरफ फातमी को 192815 मतदाताओं का समर्थन मिला था जबकि 239268 मत पाकर भाजपा के कीर्ति झा आजद ने यहां सफलता पाई थी। कांग्रेस की उम्मीदवारी को लेकर इस बार कोई खास सरगर्मी नहीं दिख रही है और कांग्रेस के मौजूदा रणनीति को देखते हुए जिला स्तर के नेता कुछ भी बोलने से परहेज रख रहे हैं। पिछले चुनाव में अजय जलान यहां से कांग्रेस ई. के उम्मीदवार थे जिन पर 40724 मतदाताओं ने दांव लगाया था। बसपा एवं वामदल भी यहां से चुनाव लड़ते आये हैं। वामदलों को जहां अपने कैडर मतों से ही संतोष करना पड़ता है वहीं जिले की राजनीति में बसपा द्वारा सिर्फ औपचारिकता निभाई जाती है फिर भी इस पार्टी से कई दावेदार अभी से ही टिकट प्राप्ति की जुगाड़ में यूपी और दिल्ली की सैर पर हैं। वर्ष 2009 में सीपीआई (एमएल) से सत्यनारायण मुखिया उम्मीदवार थे जिन्हें 12155 मत मिले थे जबकि बसपा से युगेश्वर सहनी को चुनाव लड़ने का मौका मिला था जिन्हें 9234 मतों से ही संतोष करना पड़ा।
किस दल से कौन-कौन रखते हैं उम्मीदवारी की चाहत
जद यू.
दरभंगा लोस क्षेत्र से जद यू. की तरफ से कौन चुनाव लड़ेगा इसके स्पस्ट संकेत अभी नहीं मिले हैं लेकिन पूर्व के दिनों में भाजपा को छोड़कर जद यू. का दामन थामनेवाले संजय झा जद यू. के सर्वमान्य नेता एवं मुख्यमंत्री के विश्वासपात्र माने जाते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के समय संजय झा ने भाजपा में रहते हुए कई लोगों को जद यू. का टिकट दिलाया था जिन्हंें सफलता भी हाथ लगी। इन सबों को देखते हुए ऐसा लगता है कि संजय झा अगर यहां चुनाव लड़ने की ठान लें तो पार्टी द्वारा इनकार नहीं किया जा सकता है। वैसे श्री झा की रूचि एवं रूतबे को देखते हुए यहां से चुनाव लड़ने की मंशा रखनेवाले अपनी भावना को अभी दिल में ही दबाकर रखे हुए हैं लेकिन अंदर ही अंदर पार्टी की रणनीतिकारों तक अपनी भावना जताने हेतु प्रयासरत हैं। अगर संजय झा यहां से चुनाव नहीं लड़ते हैं तो फिर जद यू. यहां से उम्मीदवारी तय करने में काफी माथापच्ची करनी पड़ सकती है। दावेदारों की लंबी लिस्ट और हो भी क्यों नहीं लंबे समय से पार्टी की सेवा में लगे कार्यकत्र्ताओं में भी तो आगे बढ़ने की ललक होती है। कुछ इसी मानसिकता से जद यू. की राजनीति से जुड़े कई लोग गोपनीय रूप से खुद को भी दावेदार बताने से परहेज नहीं कर रहे हैं।
दरभंगा लोस क्षेत्र से जद यू. की तरफ से कौन चुनाव लड़ेगा इसके स्पस्ट संकेत अभी नहीं मिले हैं लेकिन पूर्व के दिनों में भाजपा को छोड़कर जद यू. का दामन थामनेवाले संजय झा जद यू. के सर्वमान्य नेता एवं मुख्यमंत्री के विश्वासपात्र माने जाते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के समय संजय झा ने भाजपा में रहते हुए कई लोगों को जद यू. का टिकट दिलाया था जिन्हंें सफलता भी हाथ लगी। इन सबों को देखते हुए ऐसा लगता है कि संजय झा अगर यहां चुनाव लड़ने की ठान लें तो पार्टी द्वारा इनकार नहीं किया जा सकता है। वैसे श्री झा की रूचि एवं रूतबे को देखते हुए यहां से चुनाव लड़ने की मंशा रखनेवाले अपनी भावना को अभी दिल में ही दबाकर रखे हुए हैं लेकिन अंदर ही अंदर पार्टी की रणनीतिकारों तक अपनी भावना जताने हेतु प्रयासरत हैं। अगर संजय झा यहां से चुनाव नहीं लड़ते हैं तो फिर जद यू. यहां से उम्मीदवारी तय करने में काफी माथापच्ची करनी पड़ सकती है। दावेदारों की लंबी लिस्ट और हो भी क्यों नहीं लंबे समय से पार्टी की सेवा में लगे कार्यकत्र्ताओं में भी तो आगे बढ़ने की ललक होती है। कुछ इसी मानसिकता से जद यू. की राजनीति से जुड़े कई लोग गोपनीय रूप से खुद को भी दावेदार बताने से परहेज नहीं कर रहे हैं।
भाजपा
इस सीट से राष्ट्रीय और अन्र्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी कीर्ति झा आजाद सांसद हैं। 1999 एवं वर्ष 2009 में यहां से चुनावी सफलता मिलने कीर्ति झा आजाद स्थानीय राजनीति के उतार-चढ़ाव को अच्छी तरह समझने लगे हैं। इनके पुराने प्रदर्शन को देखते हुए भाजपा एक बार फिर से इन पर दांव लगा सकती है लेकिन दरभंगा भाजपा में व्याप्त गुटबाजी के कारण पार्टी के अंदरखाने में यह भी चर्चा हो रही है कि जनता इस बार परिवत्र्तन के मूड में दिखती है। नमो लहर को यदि सफलतापूर्वक भुनाना है तो भाजपा को यहां उम्मीदवार बदलना होगा। लेकिन कीर्ति झा आजाद का दरभंगा के प्रति लगाव एवं पार्टी के प्रति समर्पण की भावना को देखते हुए भाजपा के लिए निवर्तमान सांसद को बेटिकट करना कहीं से भी संभव प्रतीत नहीं होता।
इस सीट से राष्ट्रीय और अन्र्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी कीर्ति झा आजाद सांसद हैं। 1999 एवं वर्ष 2009 में यहां से चुनावी सफलता मिलने कीर्ति झा आजाद स्थानीय राजनीति के उतार-चढ़ाव को अच्छी तरह समझने लगे हैं। इनके पुराने प्रदर्शन को देखते हुए भाजपा एक बार फिर से इन पर दांव लगा सकती है लेकिन दरभंगा भाजपा में व्याप्त गुटबाजी के कारण पार्टी के अंदरखाने में यह भी चर्चा हो रही है कि जनता इस बार परिवत्र्तन के मूड में दिखती है। नमो लहर को यदि सफलतापूर्वक भुनाना है तो भाजपा को यहां उम्मीदवार बदलना होगा। लेकिन कीर्ति झा आजाद का दरभंगा के प्रति लगाव एवं पार्टी के प्रति समर्पण की भावना को देखते हुए भाजपा के लिए निवर्तमान सांसद को बेटिकट करना कहीं से भी संभव प्रतीत नहीं होता।
राजद-लोजपा गठबंधन
गठबंधन के तहत दरभंगा सीट राजद के हिस्से में है जहां से इस बार भी राजद की ओर से चुनाव लड़ने की तैयारी की जा रही है। अभी तक की राजनीतिक स्थिति के मुताबिक पूर्व केन्द्रीय मंत्री मो. अली अशरफ फातमी की राजनीतिक चहलकदमी को देखकर ऐसा लगता है कि पार्टी द्वारा उन्हें यहां से चुनाव लड़ने की हरी झंडी मिल चुकी हो। तीन बार यहां से सांसद रहे चुके फातमी को पार्टी द्वारा आगे बढ़ाने का हर संभव प्रयास किया गया इस दौरान उन्हें केन्द्रीय मंत्री बनने तक का सौभाग्य प्राप्त हुआ। राजद द्वारा इस सीट से हर हाल में किसी अल्पसंख्यक चेहरे को ही मौका दिया जायेगा जिसमें पूर्व सांसद का नाम अव्वल नंबर पर है। हर दल कि तरह दरभंगा जिला राजद में टिकट के नाम पर गुटबाजी व्याप्त है और इनके विरोधी गुट के लोगों की दलील है कि पूर्व सांसद की छवि स्थानीय स्तर के नेता की है। जिस प्रकार से उन्हें केन्द्रीय मंत्री बनाया गया था उसके मुताबिक वे प्रदर्शन नहीं कर सके जिसका नतीजा है कि मुस्लिम नेता के रूप में वे मिथिलांचल स्तर तक सिमटकर रह गये हैं। पार्टी द्वारा इनके बदले किसी दूसरे अल्पसंख्यक चेहरे को मौका दिया जाता है तो यहां ‘क्लीन स्वीप’ मिल सकती है। लेकिन भाजपा एवं जद यू. के संभावित उम्मीदवार की कद-काठी को देखते हुए उनके खिलाफ बड़ी हैसियत के उम्मीदवार को उताड़ना होगा और इसके लिये अली अशरफ फातमी के अलावे कोई दमदार चेहारा सामने नजर नहीं आ रहा है। कुल मिलाकर अली अशरफ फातमी ही प्रतिद्वंदी दलों को तगड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं।
गठबंधन के तहत दरभंगा सीट राजद के हिस्से में है जहां से इस बार भी राजद की ओर से चुनाव लड़ने की तैयारी की जा रही है। अभी तक की राजनीतिक स्थिति के मुताबिक पूर्व केन्द्रीय मंत्री मो. अली अशरफ फातमी की राजनीतिक चहलकदमी को देखकर ऐसा लगता है कि पार्टी द्वारा उन्हें यहां से चुनाव लड़ने की हरी झंडी मिल चुकी हो। तीन बार यहां से सांसद रहे चुके फातमी को पार्टी द्वारा आगे बढ़ाने का हर संभव प्रयास किया गया इस दौरान उन्हें केन्द्रीय मंत्री बनने तक का सौभाग्य प्राप्त हुआ। राजद द्वारा इस सीट से हर हाल में किसी अल्पसंख्यक चेहरे को ही मौका दिया जायेगा जिसमें पूर्व सांसद का नाम अव्वल नंबर पर है। हर दल कि तरह दरभंगा जिला राजद में टिकट के नाम पर गुटबाजी व्याप्त है और इनके विरोधी गुट के लोगों की दलील है कि पूर्व सांसद की छवि स्थानीय स्तर के नेता की है। जिस प्रकार से उन्हें केन्द्रीय मंत्री बनाया गया था उसके मुताबिक वे प्रदर्शन नहीं कर सके जिसका नतीजा है कि मुस्लिम नेता के रूप में वे मिथिलांचल स्तर तक सिमटकर रह गये हैं। पार्टी द्वारा इनके बदले किसी दूसरे अल्पसंख्यक चेहरे को मौका दिया जाता है तो यहां ‘क्लीन स्वीप’ मिल सकती है। लेकिन भाजपा एवं जद यू. के संभावित उम्मीदवार की कद-काठी को देखते हुए उनके खिलाफ बड़ी हैसियत के उम्मीदवार को उताड़ना होगा और इसके लिये अली अशरफ फातमी के अलावे कोई दमदार चेहारा सामने नजर नहीं आ रहा है। कुल मिलाकर अली अशरफ फातमी ही प्रतिद्वंदी दलों को तगड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं।
कांग्रेस
गठबंधन की राजनीति के इस दौड़ में बिहार में कांग्रेस क्या करेगी। इसी बात पर कांग्रेस के टिकटार्थियों की नजर टिकी हुई है। जद यू. से गठबंधन तय होने की स्थिति में कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं को जद यू. के लिये पसीने बहाने होंगे और यदि राजद-लोजपा के साथ सहमति बन गई तो भी सहयोगी दल के भूमिका का ही निर्वहन करना है। अंतिम विकल्प के तौर पर कांग्रेस यदि स्वतंत्र होकर चुनाव लड़ती है तो देश की सबसे पुरानी पार्टी के टिकट की चाह बड़े-बड़े धनबली भी रखते हैं।
गठबंधन की राजनीति के इस दौड़ में बिहार में कांग्रेस क्या करेगी। इसी बात पर कांग्रेस के टिकटार्थियों की नजर टिकी हुई है। जद यू. से गठबंधन तय होने की स्थिति में कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं को जद यू. के लिये पसीने बहाने होंगे और यदि राजद-लोजपा के साथ सहमति बन गई तो भी सहयोगी दल के भूमिका का ही निर्वहन करना है। अंतिम विकल्प के तौर पर कांग्रेस यदि स्वतंत्र होकर चुनाव लड़ती है तो देश की सबसे पुरानी पार्टी के टिकट की चाह बड़े-बड़े धनबली भी रखते हैं।
वामदल
मिथिलांचल में वामपंथ के अस्तित्व को कायम रखने की मंशा से बिहार में सक्रिय वामदलों द्वारा भी यहां से उम्मीदवारी दी जाती रही है जिसके अनुसार पिछले चुनाव में सीपीआई (एमएल) से सत्यनारायण मुखिया यहां से उम्मीदवार बने थे। वामदलों के संगठन जिले में चुस्त-दुरूस्त तो है लेकिन पुराने सभी वुनावी रिकार्ड के अनुसार वामपंथी पार्टियां यहां कैडर वोट बटोरने के अलावे एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाती है। वामदलों में उम्मीदवारी हेतु कोई हलचल नहीं देखी जा रही है।
मिथिलांचल में वामपंथ के अस्तित्व को कायम रखने की मंशा से बिहार में सक्रिय वामदलों द्वारा भी यहां से उम्मीदवारी दी जाती रही है जिसके अनुसार पिछले चुनाव में सीपीआई (एमएल) से सत्यनारायण मुखिया यहां से उम्मीदवार बने थे। वामदलों के संगठन जिले में चुस्त-दुरूस्त तो है लेकिन पुराने सभी वुनावी रिकार्ड के अनुसार वामपंथी पार्टियां यहां कैडर वोट बटोरने के अलावे एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाती है। वामदलों में उम्मीदवारी हेतु कोई हलचल नहीं देखी जा रही है।
बसपा
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बरकरार रखने के लिये बिहार के अन्य जिलों की तरह यहां भी पार्टी का संगठन कार्यरत है लेकिन जो भी लोग बसपा की राजनीति से जुड़े हैं राजनीति का शौक पूरा करने एवं निजी उद्देश्यों की पूर्ति हेतु जुड़े हैं। पार्टी नेतृत्व भी इस जिले से कोई खास अपेक्षा नहीं रखता है जिससे कि यह कहना मुश्किल है कि दरभंगा लोस क्षेत्र में बसपा से कौन आ रहा है?
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बरकरार रखने के लिये बिहार के अन्य जिलों की तरह यहां भी पार्टी का संगठन कार्यरत है लेकिन जो भी लोग बसपा की राजनीति से जुड़े हैं राजनीति का शौक पूरा करने एवं निजी उद्देश्यों की पूर्ति हेतु जुड़े हैं। पार्टी नेतृत्व भी इस जिले से कोई खास अपेक्षा नहीं रखता है जिससे कि यह कहना मुश्किल है कि दरभंगा लोस क्षेत्र में बसपा से कौन आ रहा है?
निष्कर्षतः टिकट पाने में चाहे जो भी कामयाब रहे लेकिन जद यू. द्वारा भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ने से यहां की चुनावी फिजा बदली-बदली रहेगी और दानों के अलग होकर चुनाव लड़ने का परिणाम चैकाउ भी हो जाय तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
यह खबर विकाश जी के द्वारा बातचीत पर आधारित है। खबर की प्रितिक्रिया दे biharone@gmail.com
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