भवबंधन से मुक्ति का मार्ग धर्माचार्य स्वामी प्रभुपाद जो मनुष्य भगवान के आविर्भाव के सत्य को समझ लेता है, वह इस भवबंधन से मुक्त हो जाता है और इस शरीर को छोड़ते ही वह तुरन्त भगवान के धाम को लौट जाता है. भवबंधन से जीव की ऐसी मुक्ति सरल नहीं है. निर्विशेषवादी तथा योगीजन पर्याप्त कष्ट तथा अनेकानेक जन्मों के बाद ही मुक्ति प्राप्त कर पाते हैं . इतने पर भी उन्हें जो मुक्ति भगवान की निराकार ब्रह्मज्योति में तादात्म्य प्राप्त करने के रूप में मिलती है, वह आंशिक होती है और इस भौतिक संसार में लौट आने का भय बना रहता है. किन्तु भगवान के शरीर की दिव्य प्रकृति तथा उनके कार्यकलापों को समझने मात्र से भक्त इस शरीर का अन्त होने पर भगवद्धाम को प्राप्त करता है और उसे इस संसार में लौट आने का भय नहीं रह जाता. ब्रह्मसंहिता में बताया गया है कि भगवान के अनेक रूप तथा अवतार हैं- यद्यपि भगवान के अनेक दिव्य रूप हैं, फिर भी वे अद्वय भगवान हैं. इस तथ्य को विश्वासपूर्वक समझना चाहिए. यद्यपि यह संसारी विद्वानों तथा ज्ञानयोगियों के लिए अगम्य है. जैसा कि वेदों (पुरुषबोधिनी उपनिषद) में ...
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