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भवबंधन से मुक्ति का मार्ग

भवबंधन से मुक्ति का मार्ग
धर्माचार्य स्वामी प्रभुपाद
जो मनुष्य भगवान के आविर्भाव के सत्य को समझ लेता है, वह इस भवबंधन से मुक्त हो जाता है और इस शरीर को छोड़ते ही वह तुरन्त भगवान के धाम को लौट जाता है.
भवबंधन से जीव की ऐसी मुक्ति सरल नहीं है. निर्विशेषवादी तथा योगीजन पर्याप्त कष्ट तथा अनेकानेक जन्मों के बाद ही मुक्ति प्राप्त कर पाते हैं . इतने पर भी उन्हें जो मुक्ति भगवान की निराकार ब्रह्मज्योति में तादात्म्य प्राप्त करने के रूप में मिलती है, वह आंशिक होती है और इस भौतिक संसार में लौट आने का भय बना रहता है.
किन्तु भगवान के शरीर की दिव्य प्रकृति तथा उनके कार्यकलापों को समझने मात्र से भक्त इस शरीर का अन्त होने पर भगवद्धाम को प्राप्त करता है और उसे इस संसार में लौट आने का भय नहीं रह जाता.
ब्रह्मसंहिता में बताया गया है कि भगवान के अनेक रूप तथा अवतार हैं- यद्यपि भगवान के अनेक दिव्य रूप हैं, फिर भी वे अद्वय भगवान हैं.
इस तथ्य को विश्वासपूर्वक समझना चाहिए. यद्यपि यह संसारी विद्वानों तथा ज्ञानयोगियों के लिए अगम्य है. जैसा कि वेदों (पुरुषबोधिनी उपनिषद) में कहा गया है- एकोदेवो नित्यलीलानुरक्तो भक्तव्यापी हृद्यन्तरात्मा. अर्थात एक भगवान अपने निष्काम भक्तों के साथ अनेकानेक दिव्य रूपों में सदैव सम्बन्धित है.
इस वेदवचन की स्वयं भगवान ने गीता में पुष्टि की है. जो इस सत्य को वेद तथा भगवान के प्रमाण के आधार पर स्वीकार करता है और शुष्क चिन्तन में समय नहीं गंवाता, वह मुक्ति की चरम सिद्धि प्राप्त करता है.
इस सत्य को श्रद्धापूर्वक स्वीकार करने से मनुष्य निश्चित रूप से मुक्ति-लाभ कर सकता है. इस प्रसंग में वैदिक वाक्य तत्वमसि लागू होता है. जो कोई भगवान कृष्ण को परब्रह्म करके जानता है या उनसे कहता है कि आप वही परब्रह्मा श्री भगवान हैं, वह निश्चित रूप से मुक्त हो जाता है. फलस्वरूप उसे भगवान की दिव्यसंगति की प्राप्ति निश्चित हो जाती है. दूसरे शब्दों में, ऐसा श्रद्धालु भगवद्भक्त सिद्धि प्राप्त करता है.

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