साभार मुकेश कुमार
दैनिक जागरण समस्तीपुर
मिथिलांचल का द्वार कहे जाने वाला समस्तीपुर . और इस जिले के किसानो का एकमात्र जीविका का साधन जोरने वाला जितवारपुर चीनी मिल का अब सरंचना मात्र शेष बाख गया है . सरकार के कई महत्वपूर्ण भारतीय प्रशाशनिक सेवा के अधिकारियो का इस मिल को बचने का सपना भी अधुरा रह गया।इसपर एक परताल मुकेश भैया जी ने की है बिस्तृत ............
भविष्य की रचना उसके अतीत से होती है। खासकर इस जिले की तो हर धड़कन उसके अतीत की ही प्रतिध्वनि है। घटनाएं, प्रवृतियां, फैसले और विचार उसे समृद्ध करते रहते हैं, तो कई बार पीछे भी खींचते हैं। स्थापना दिवस नजदीक होने के कारण हमारा ध्यान तेजी से बदलते निकटतम वर्तमान को दर्ज करने, उसका विश्लेषण करने पर केन्द्रित रहा है। स्थापना की 41 वीं वर्षगांठ पर हमने तय किया कि अपने उस इतिहास पर दृष्टिपात किया जाए जिसके कारण हम औद्योगिक और कृषि क्षेत्र में लगातार पिछड़ते चले गए। वैसे तो मेरी पैदाईश 14 नवंबर 1972 को हुई थी। आज की तिथि से मेरे इस उम्र का अंदाजा लगाया जा सकता है। समय के पहिए के साथ उम्र भी बढ़ गई, साथ ही उम्मीदें भी। क्या बतलाऊं। हमारे कंधे पर करीब 42 लाख 54 हजार 782 की आबादी का बोझ है। सभी अपने-अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। भय, भूख और भ्रष्टाचार मेरे सामने चुनौती है। जब 40 साल के किसी जवान की हंसती खेलती गृहस्थी को देखता हूं तो सहसा ही मेरा मन दुखी हो जाता है। मन में यह सवाल कुरेदने लगता है कि जब चालीस साल में किसी आदमी की गृहस्थी जवान हो सकती है, तो मेरी गृहस्थी क्यों नहीं। पर सोचकर मन मायूस हो जाता है। पूर्व में लगाए गए उद्योग-धंधों की बात करें तो लगता है, मैं पहले ही ठीक था। एक पेपर मिल और चीनी मिल से सैकड़ों कर्मियों के लिए निवाले का जुगाड़ होता था। पर विकसित होने की पहचान ने हमारी ही धरती पर एक -एक कर सभी कारखाने बंद होते चले गए। ऐसा लगा मानों अब इसे किसी की नजर लग गई। जिला मुख्यालय में 1917 से स्थापित चीनी मिल का नामोनिशान मिट गया। क्योंकि इसकी नीलामी हो गई। वह भी महज 28.77 करोड़ रुपए में। अब यह निजी हाथों में चली गई। औद्योगिक क्षेत्र की स्थिति यहां तक आ पहुंची कि विभिन्न इकाईयों के नाम पर आवंटित कुल 48 एकड़ में फैले इस औद्योगिक प्रक्षेत्र में कोई नयी औद्योगिक इकाई नहीं खुल पाई। कुछ बनी भी तो कुछ बीमार भी हो गयी। कुछ ने अपना कारोबार समेट लिया। इस परिसर में कुल 13 औद्योगिक इकाई ही संचालित है। रही बात कृषि क्षेत्र की तो बता दें कि अभी तक सिंचित क्षेत्र में वृद्धि तक नहीं हो पायी है। नावार्ड द्वारा वित्त पोषित बिग विश प्लांट की उपलब्धियां भी कुछ खास नहीं रही। हालांकि यह अप्रैल 2009 में शुरू हुआ था। रही बात स्टेट ट्यूबेल की तो वह बिल्कुल मृतप्राय हो चुका है। 196 स्टेट ट्यूबेल में से 16-17 ही चालू स्थिति में है। बता दें कि कृषि प्रधान इस जिले में 2,62, 390 हेक्टेयर भूखंड है। 3811 हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य व्यवहारिक ही नहीं है। वहीं 9140 हेक्टेयर जलसंग्रहण का क्षेत्र है। इसमें 53903 हेक्टेयर गैर कृषि योग्य भूमि है जो कुल क्षेत्र का 20.5 वां हिस्सा आता है। पुराने 258 नलकूपों में से 186 ठप है। उद्भव सिंचाई योजना की 99 इकाईयों में से 92 ठप है। बार्ज योजना के सभी 137 संयत्र बेकार पड़े हुए हैं। इसमें जो चार ठीक हैं, उसकी रही-सही कसर विद्युत आपूर्ति भी खराब कर रही है। नवार्ड फेज 11 के तहत वर्ष भर पूर्व जिले में 128 नए राजकीय नलकूप लगाये गए थे। इसमें विद्युत आपूर्ति के लिए वर्ष 2008 तथा मार्च 2010 में नलकूप विभाग ने 1 करोड़ 28 लाख रूपए बिजली बोर्ड को भी दिया था। इसमें से अबतक रोसड़ा के महज चार नलकूपों को बिजली आपूर्ति की जा सकी। शेषनलकूप बिजली के बगैर बंद पड़े हुए हैं। वहीं पुराने 258 नलकूपों की उलटी गिनती जारी है। वैसे विभागीय रिकार्ड में इसकी संख्या 72 बतायी जा रही है। इसी तरह लघु सिंचाई परियोजना के तहत लगाए गए 99 उद्भव परियोजना के तहत लगाए गए उदभव सिंचाई परियोजना में से सरकारी आंकड़े 7 को सही हालत में बताये जाते हैं। इसी तरह लघु सिंचाई विभाग की सभी 137 बार्ज संयत्र भी बेकार पड़े हुए हैं।
औद्योगिक इतिहास पर नजर
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- स्थापना काल में जिले की कुल आबादी 18 लाख 27 हजार 478 थी उस समय शहर की आबादी 20 से 25 हजार के करीब थी। अब यह संख्या लगभग एक लाख पार कर रही है।
- 14 नवंबर 1972 में जिले का दर्जा मिला। उस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री केदार पाण्डेय थे। इसके पूर्व दरभंगा जिले के अधीन एक अनुमंडल के रूप में थी इसकी पहचान
- यहां लगभग 300 छोटे बड़े लघु व कुटीर उद्योग स्थापित थे
- दलसिंहसराय में सिगरेट, वारिसनगर में सलाई, पूसारोड में बर्तन, ताजपुर में कांटी व छड़ बनाने की थी फैक्ट्री। शहर में कूट फैक्ट्री, चीनी मिल, पेपर मिल स्थापित था, जो अब बंद हो गए।
दैनिक जागरण समस्तीपुर
मिथिलांचल का द्वार कहे जाने वाला समस्तीपुर . और इस जिले के किसानो का एकमात्र जीविका का साधन जोरने वाला जितवारपुर चीनी मिल का अब सरंचना मात्र शेष बाख गया है . सरकार के कई महत्वपूर्ण भारतीय प्रशाशनिक सेवा के अधिकारियो का इस मिल को बचने का सपना भी अधुरा रह गया।इसपर एक परताल मुकेश भैया जी ने की है बिस्तृत ............
भविष्य की रचना उसके अतीत से होती है। खासकर इस जिले की तो हर धड़कन उसके अतीत की ही प्रतिध्वनि है। घटनाएं, प्रवृतियां, फैसले और विचार उसे समृद्ध करते रहते हैं, तो कई बार पीछे भी खींचते हैं। स्थापना दिवस नजदीक होने के कारण हमारा ध्यान तेजी से बदलते निकटतम वर्तमान को दर्ज करने, उसका विश्लेषण करने पर केन्द्रित रहा है। स्थापना की 41 वीं वर्षगांठ पर हमने तय किया कि अपने उस इतिहास पर दृष्टिपात किया जाए जिसके कारण हम औद्योगिक और कृषि क्षेत्र में लगातार पिछड़ते चले गए। वैसे तो मेरी पैदाईश 14 नवंबर 1972 को हुई थी। आज की तिथि से मेरे इस उम्र का अंदाजा लगाया जा सकता है। समय के पहिए के साथ उम्र भी बढ़ गई, साथ ही उम्मीदें भी। क्या बतलाऊं। हमारे कंधे पर करीब 42 लाख 54 हजार 782 की आबादी का बोझ है। सभी अपने-अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। भय, भूख और भ्रष्टाचार मेरे सामने चुनौती है। जब 40 साल के किसी जवान की हंसती खेलती गृहस्थी को देखता हूं तो सहसा ही मेरा मन दुखी हो जाता है। मन में यह सवाल कुरेदने लगता है कि जब चालीस साल में किसी आदमी की गृहस्थी जवान हो सकती है, तो मेरी गृहस्थी क्यों नहीं। पर सोचकर मन मायूस हो जाता है। पूर्व में लगाए गए उद्योग-धंधों की बात करें तो लगता है, मैं पहले ही ठीक था। एक पेपर मिल और चीनी मिल से सैकड़ों कर्मियों के लिए निवाले का जुगाड़ होता था। पर विकसित होने की पहचान ने हमारी ही धरती पर एक -एक कर सभी कारखाने बंद होते चले गए। ऐसा लगा मानों अब इसे किसी की नजर लग गई। जिला मुख्यालय में 1917 से स्थापित चीनी मिल का नामोनिशान मिट गया। क्योंकि इसकी नीलामी हो गई। वह भी महज 28.77 करोड़ रुपए में। अब यह निजी हाथों में चली गई। औद्योगिक क्षेत्र की स्थिति यहां तक आ पहुंची कि विभिन्न इकाईयों के नाम पर आवंटित कुल 48 एकड़ में फैले इस औद्योगिक प्रक्षेत्र में कोई नयी औद्योगिक इकाई नहीं खुल पाई। कुछ बनी भी तो कुछ बीमार भी हो गयी। कुछ ने अपना कारोबार समेट लिया। इस परिसर में कुल 13 औद्योगिक इकाई ही संचालित है। रही बात कृषि क्षेत्र की तो बता दें कि अभी तक सिंचित क्षेत्र में वृद्धि तक नहीं हो पायी है। नावार्ड द्वारा वित्त पोषित बिग विश प्लांट की उपलब्धियां भी कुछ खास नहीं रही। हालांकि यह अप्रैल 2009 में शुरू हुआ था। रही बात स्टेट ट्यूबेल की तो वह बिल्कुल मृतप्राय हो चुका है। 196 स्टेट ट्यूबेल में से 16-17 ही चालू स्थिति में है। बता दें कि कृषि प्रधान इस जिले में 2,62, 390 हेक्टेयर भूखंड है। 3811 हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य व्यवहारिक ही नहीं है। वहीं 9140 हेक्टेयर जलसंग्रहण का क्षेत्र है। इसमें 53903 हेक्टेयर गैर कृषि योग्य भूमि है जो कुल क्षेत्र का 20.5 वां हिस्सा आता है। पुराने 258 नलकूपों में से 186 ठप है। उद्भव सिंचाई योजना की 99 इकाईयों में से 92 ठप है। बार्ज योजना के सभी 137 संयत्र बेकार पड़े हुए हैं। इसमें जो चार ठीक हैं, उसकी रही-सही कसर विद्युत आपूर्ति भी खराब कर रही है। नवार्ड फेज 11 के तहत वर्ष भर पूर्व जिले में 128 नए राजकीय नलकूप लगाये गए थे। इसमें विद्युत आपूर्ति के लिए वर्ष 2008 तथा मार्च 2010 में नलकूप विभाग ने 1 करोड़ 28 लाख रूपए बिजली बोर्ड को भी दिया था। इसमें से अबतक रोसड़ा के महज चार नलकूपों को बिजली आपूर्ति की जा सकी। शेषनलकूप बिजली के बगैर बंद पड़े हुए हैं। वहीं पुराने 258 नलकूपों की उलटी गिनती जारी है। वैसे विभागीय रिकार्ड में इसकी संख्या 72 बतायी जा रही है। इसी तरह लघु सिंचाई परियोजना के तहत लगाए गए 99 उद्भव परियोजना के तहत लगाए गए उदभव सिंचाई परियोजना में से सरकारी आंकड़े 7 को सही हालत में बताये जाते हैं। इसी तरह लघु सिंचाई विभाग की सभी 137 बार्ज संयत्र भी बेकार पड़े हुए हैं।
औद्योगिक इतिहास पर नजर
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- स्थापना काल में जिले की कुल आबादी 18 लाख 27 हजार 478 थी उस समय शहर की आबादी 20 से 25 हजार के करीब थी। अब यह संख्या लगभग एक लाख पार कर रही है।
- 14 नवंबर 1972 में जिले का दर्जा मिला। उस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री केदार पाण्डेय थे। इसके पूर्व दरभंगा जिले के अधीन एक अनुमंडल के रूप में थी इसकी पहचान
- यहां लगभग 300 छोटे बड़े लघु व कुटीर उद्योग स्थापित थे
- दलसिंहसराय में सिगरेट, वारिसनगर में सलाई, पूसारोड में बर्तन, ताजपुर में कांटी व छड़ बनाने की थी फैक्ट्री। शहर में कूट फैक्ट्री, चीनी मिल, पेपर मिल स्थापित था, जो अब बंद हो गए।
maine aapka blog dekha
ReplyDeleteGhanshyam roy Birnama
samastipur