आतंकवाद का जन्मदाता पाकिस्तान
पाकिस्तान के 16 विशेष दूत दुनिया से निराश होकर लौटे क्यों? दुनिया ने पाकिस्तान के विशेष दूतों को खाली हाथ और निराश कर लौटाया क्यों? दुनिया पाकिस्तान की कश्मीर पर बात अब सुनने के लिए तैयार क्यों नहीं है? क्या दुनिया अब गिलगित और बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान से जवाब नहीं मांग रही है?
क्या दुनिया की झिड़कियों और कड़े संदेशों का अर्थ पाकिस्तान समझने के लिए अब भी तैयार है या नहीं? भविष्य में अफगानिस्तान में अगर कोई बड़ी आतंकवादी घटना घटी तो फिर अमेरिका पाकिस्तान को बख्शने के लिए तैयार होगा? क्या नवाज शरीफ कुएं और खाई के बीच में नहीं खड़े हैं? खुद घरेलू मोर्चे पर नवाज शरीफ कमजोर नहीं होते जा रहे हैं? पाकिस्तान के र्जे-र्जे में जो आतंकवादी मानसिकता पसर चुकी है वह इतनी जल्दी समाप्त होगी भी कै से?
पाकिस्तान को क्या अब बाल्टिस्तान और गिलगित के अंदर उठ रही स्वतंत्रता की मांग पर भी जवाब नहीं देना पड़ेगा? पाकिस्तान ने क्या बाल्टिस्तान और गिलगित पर अवैध कब्जा कर नहीं रखा है? गुलाम कश्मीर में जो पाकिस्तान के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं उसका जवाब भी पाकिस्तान को कैसे नहीं देना होगा? पाकिस्तान कोई एक नहीं बल्कि बहुतेरे संकटों से घिर चुका है, भारत को तहस-नहस करने और भारत को आतंकवादी गतिविधियों से तोड़ने की उसकी नीति आत्मघाती साबित हो चुकी है। फिर भी पाकिस्तान सुधरेगा कहां? उम्मीद बनती भी नहीं है।
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद नवाज शरीफ ने एक चाल चली थी। उस चाल का अर्थ भारत को बदनाम करना था। उसी दुनिया के सामने पाकिस्तान भारत को बदनाम करना चाहता था जिस दुनिया ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के भीषण और खूनी परिणाम झेले हैं? पाकिस्तान ने जिस कश्मीर में पिछले 70 सालों से कुचक्र चलाकर, मजहबी खेल खेलकर, आतंकवादी हिंसा फैलाकर मानवाधिकारों की कब्र बनाई है उसी कश्मीर में भारत द्वारा कथित तौर मानवाधिकार हनन का हथकंडा बनाया।
इस निमित उसने दुनिया को मूर्ख बनाने के लिए 16 विशेष दूत बनाए थे। विशेष दूतों को वही भारत विरोधी पुराने टेप रटाए गए थे। जिस बात को हाल ही में यूएनओ के अंदर नवाज शरीफ बोले थे उसी बात को दुनिया के विशेष देशों में पाकिस्तानी दूतों को बोलने थे। नवाज शरीफ और पाकिस्तान की सेना को बड़ी आशा थी कि उनके विशेष दूत बहादुरी दिखाएंगे, भारत का बाजा बजा देंगे और पाकिस्तान की वाह-वाही होगी।
ऐसा कुछ नहीं हुआ। नवाज शरीफ की उम्मीद नाउम्मीदी में बदलनी ही थी और बदली भी। सभी 16 विशेष दूत दुनियाभर से अपमानित होकर लौट गए। विशेष दूतों ने जिस प्रकार की कहानियां बताई उससे पाक के प्रति दुनियाभर में बैठी सोच काफी प्रदर्शित होती है। इस सोच की ध्वनि यही है कि पाक को अब सुधर जाना चाहिए।
पाकिस्तान को अमेरिका से बड़ी उम्मीद थी। मुशाहिद हुसैन सैयद को पाक ने विशेष दूत बनाकर भारत के खिलाफ समझाने भेजा था। अमेरिका के नीति निर्धारकों ने मुशहिद हुसैन सैयद को मिलने तक का अवसर नहीं दिया। अमरिका के पाक दूतावास में सेमिनार में मुशाहिद हुसैन सैयद ने दो घंटे तक भाषण जरूर दिया पर उपस्थित लोगों में कोई खास प्रतिक्रिया नही हुई।
उल्टे अमेरिका में बाल्टिस्तान और गिलगित नेशनल कांग्रेस के निदेशक सेंगे सैरिंग ने मुशाहिद हुसैन सैयद से सवाल किया कि गिलगित और बाल्टिस्तान पर अवैध कब्जा करने वाला देश पाक किस प्रकार से मानवाधिकार हनन की बात उठा सकता है। सेंगे सैरिंग ने आंकड़े के साथ गिलगित और बाल्टिस्तान में पाकिस्तान द्वारा मानवाधिकार हनन की बात उठाई। पाकिस्तान गिलगित और बाल्टिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर एक ओर अपनी तिजोरी भर रहा है वहीं दूसरी ओर गिलगित और बाल्टिस्तान की आबादी को भूखों मार रहा है।
इसी तरह फ्रांस में पाक की दुर्गति हुई। फ्रांस में नवाज शरीफ ने अपनी पार्टी के सांसद राना अफजल को विशेष दूत बनाकर भेजा था। राना अफजल ने फ्रांस के अधिकारियों के सामने भारत के खिलाफ जैसे ही मामला रखा वैसे ही फ्रांस के अधिकारियों ने पाकिस्तानी दूत के सामने सवालों की बौछार कर दी। फ्रांस के नीति निर्धारकों ने पूछा कि पाक हाफिज सईद को क्यों और किस लिए पाल कर रखा है, दुनियाभर में आतंकवादी घटनाओं के तार पाकिस्तान से ही क्यों जुड़े होते हैं।
अफगानिस्तान में तालिबान को पाकिस्तान क्यों सर्मथन देता है। पाकिस्तान खुद क्यों नहीं आतंकवाद को समाप्त करता है? फ्रांस के अधिकारियों द्वारा दागे गए प्रश्नों का कोई तार्किक उत्तर पाकिस्तानी दूत के पास नहीं था। अमेरिका और यूरोपीय देश से अपमानित होकर पाकिस्तानी दूत तो लौटे ही, इसके अलावा मुस्लिम देशों से भी कोई आश्वासन नहीं मिला। मुस्लिम देशों में भी नवाज शरीफ ने विशेष दूत भेजे थे। नवाज शरीफ को उम्मीद थी कि मुस्लिम देश मजहब के आधार पर उसकी बात जरूर सुनेंगे।
मुस्लिम देशों ने पाकिस्तानी दूतों की बात गंभीरता से सुनी,पर भारत के खिलाफ प्रत्यक्ष तौर पर खड़ा होने का कोई आश्वासन नहीं दिया। मुस्लिम देश भारत की शक्ति और भारत के बाजार की ताकत जानते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि पाक की आतंकवादी नीति की आंच से कई मुस्लिम देश भी झुलस रहे हैं। ऐसे में मुस्लिम देश भी पाक के साथ कैसे खड़े हो सकते थे।
पाकिस्तान ने नाकामी मिलने पर पैंतरेबाजी शुरू कर दी है। हालांकि पैंतरेबाजी से भी पाकिस्तान को कोई फायदा होने वाला नहीं है। पाकिस्तान ने उस अमेरिका के खिलाफ पैंतरेबाजी करनी शुरू कर दी है जिसने पाकिस्तान को संरक्षण और सर्मथन देकर पाला है। अमेरिका की आर्थिक सहायता से पाकिस्तान का चूल्हा जलता है। पाकिस्तान ने कहना शुरू कर दिया है कि अब अमेरिका दुनिया की इकलौती शक्ति नहीं रहा है और वह अब भारत के पाले में जा खड़ा हुआ है।
अमेरिका ने पाक पोषित आतंकवाद की कितनी बड़ी कीमत चुकाई है, यह कौन नहीं जानता है। फिर भी अमेरिका पाकिस्तान का संरक्षण और सहायता करता आया है। अब पाकिस्तान की आतंकवादी नीति के अतिवाद परेशान होकर अमेरिका उससे पिंड छुड़ाना चाहता है। पाकिस्तान अब रूस के पाले में जाने के लिए पैंतरेबाजी कर रहा है। शायद पाक को यह अहसास नहीं है कि रूस अमेरिका की तरह डॉलर नहीं देगा।
अगर डॉलर मिलना बंद हो जाएगा तो फिर पाक की अर्थव्यवस्था कैसे चलेगी। चीन की भी एक सीमा है। चीन भारत के खिलाफ तो है पर चीन को भी भारत की बढ़ती हुई शक्ति का अहसास है। वियतनाम में भारत ने चीन को आईना दिखाया है। अब दुनिया पाक की बात सुनने के लिए तैयार नहीं है। पाकिस्तान को अब सुधरना ही हो
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