जबकि विवि के नियमों के अनुसार, मानद उपाधि देने के लिए एकेडमिक काउंसिल और सिंडिकेट का एप्रूवल होना आवश्यक है। लेकिन कुलपति ने अपनी मनमानी करते हुए बीएचयू के कुलपति को मानद उपाधि दे दी। इसकी जानकारी कुलाधिपति सह राज्यपाल रामनाथ कोविंद को भी नहीं दी गयी।
जब एकाएक दीक्षांत समारोह में बीएचयू के कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी को मानद उपाधि देने की घोषणा की गई, तो हॉल में बैठे सिनेट, सिंडिकेट और एकेडमिक काउंसिल के सभी सदस्य अवाक रह गए। हॉल में ही सदस्यों के बीच इस पर चर्चा होने लगी कि आखिर किस आधार पर बीएचयू के कुलपति को मानद उपाधि दी गई।
पूर्व सीएम लालू प्रसाद को भी नहीं मिल सकी थी मानद उपाधि
इसके पूर्व पटना विवि के पूर्व कुलपति केके झा के समय भी लालू प्रसाद को मानद उपाधि देने की बात हुई थी। एकेडमिक काउंसिल से इसे एप्रूवल भी दिया गया था। लेकिन सिंडिकेट में इसका विरोध होने के कारण इसे एप्रूवल नहीं दिया गया। हालांकि कुछ दबाव होने की वजह से इसे चांसलर को भेज दिया गया। चांसलर ने इस फैसले को रद्द कर दिया। इस कारण से लालू प्रसाद को मानद उपाधि नहीं दी गयी।
पिछली बार यशवंत सिन्हा को दी गई थी मानद उपाधि
पटना विश्वविद्यालय ने 2002 में तत्कालीन विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा को मानद उपाधि दी गई थी। साथ ही इग्नू के वीसी एचपी दीक्षित को भी पीएचडी की मानद उपाधि दी गयी थी।
जांच का विषय है। मानद उपाधि देने की जो प्रक्रिया है उसे फॉलो किया गया है या नहीं।
वीएस दुबे, पूर्व प्रॉक्टर एंड डीन
पूरी तरह गलत है। विवि के एकेडमिक काउंसिल, सिंडिकेट, सिनेट से बिना एप्रूवल के कैसे किसी को मानद उपाधि दी जा सकती है। अगर बिना नियमों का पालन किए मानद उपाधि दी गयी है तो इससे विवि की मर्यादा धूमिल हुई है। कुल मिलाकर इस पूरे मामले का राजनीतिकरण हुआ है।
प्रो. एनके चौधरी, पूर्व प्रिंसिपल, पटना कॉलेज
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