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बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर की शांति पर सीरियल ब्लास्ट का कोई असर नहीं पड़ा है, उल्टे इसकी चमक -दमक बढ़ गयी है.  ब्लास्ट के लगभग पांच माह के अंदर इसके माथे पर स्वर्ण मुकुट लग गया है. गर्भगृह में समाधि की मुद्रा में बैठे महात्मा बुद्ध की प्रतिमा से निकलेवाले तेज को ऊपर गुंबद पर सोने की चमक ने और प्रभावकारी बना दिया है. विश्व धरोहरों में शामिल इस मंदिर के गुंबद पर कुल 290 किलो सोने की पत्र चढ़ाया गया है, जिसे थाइलैंड के बौद्ध श्रद्धालुओं ने दान में दिया है. भारतीय बाजार के अनुसार, इसकी कीमत 90 करोड़ से भी ज्यादा है.
पिछले साल मिला था प्रस्ताव : दान में मिले इस सोने को थाईलैंड से भारत लाने के लिए जरूरी प्रक्रिया करीब 17 महीने में पूरी हो सकी.  प्रस्ताव पिछले वर्ष जुलाई में ही मिला था, तब से इसकी फाइल बोधगया टेंपल मैनेजमेंट कमेटी (बीटीएमसी), आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआइ), केंद्रीय वित्त मंत्रलय, संस्कृति मामलों का मंत्रलय और कई अन्य सरकारी महकमों में घूमती रही. आखिरकार दान हस्तांतरण की कागजी प्रक्रिया एक नवंबर को पूरी हुई और इसके साथ ही  थाईलैंड से सोने की खेप लाने के लिए हरी झंडी दिखायी गयी.

मंदिर के गुंबद में सोना लगाने का काम थाईलैंड के दक्ष कारीगरों ने ही पूरा किया. अप्रैल में बोधगया पहुंच कर इन कारीगरों ने पहली बार मंदिर का मुआयना किया. गुंबद की नापी की. फिर थाईलैंड लौट कर उन्होंने सीमेंट से मंदिर के गुंबद की एक प्रतिकृति बनायी. इसके बाद इस पर स्वर्ण पत्र चढ़ाने का फैसला हुआ. इसी वर्ष सितंबर  में 289.042 किलो सोने के पत्र तैयार कर गुंबद पर चढ़ाये गये. फिर इन्हीं स्वर्ण पत्रों को खोल कर भारत भेजा गया. यह कन्साइनमेंट 11 नवंबर को एयर इंडिया के विमान से गया हवाई अड्डे पर उतरा. फिर उसे महाबोधि मंदिर लाया और पत्र चढ़ाने का काम शुरू हुआ. यह काम 16 दिनों में पूरा हुआ. इसमें 14 थाई कारीगरों ने दिन-रात मेहनत की.
-16 दिनों तक सुरक्षा
स्वर्ण पत्रों को महाबोधि मंदिर के गुंबद में चढ़ाने की प्रक्रिया में सुरक्षा का मामला महत्वपूर्ण रहा. इसका खास ध्यान रखते हुए सोना चढ़ाने का काम शुरू करने से पहले मंदिर के पहले तल पर स्थित स्टोर रूम से लेकर गुंबद तक आठ सीसीटीवी कैमरे लगाये गये. सोने को स्टोर से निकाल कर शिखर तक पहुंचाने और गुंबद पर चढ़ाने की की तमाम गतिविधियों को  रेकॉर्ड किया गया. सभी कारीगरों के खास पहचानपत्र बनाये गये. काम शुरू करने के पहले तमाम कारीगरों की गहन शारीरिक जांच की गयी. मेटल डिटेक्टर से भी. यह काम बिहार पुलिस के अधिकारियों के अतिरिक्त सोने की खेप के साथ भारत आये 24 थाई कमांडो की टीम ने किया. काम पूरा होने तक सुरक्षाकर्मियों की एक अतिरिक्त टीम लगायी गयी, जो तीन शिफ्टों में लगातार 16 दिनों तक तैनात रही. थाईलैंड के कारीगरों और सुरक्षाकर्मियों की टीम ने 28 नवंबर को बीटीएमसी, डीएम और एसपी को काम पूरा होने की रिपोर्ट दी. अब सोने की सुरक्षा और स्वर्ण शिखर के संरक्षण का जिम्मा बीटीएमसी और स्थानीय प्रशासन का है.
गुंबद में लगे सोने की सुरक्षा चिंता की बात नहीं है. इसकी कई वजहें हैं.  मंदिर की ऊंचाई 180 फुट है. इस ऊंचाई तक पहुंचने के लिए व्यापक साधन-संसाधनों की जरूरत होगी, जो चोर-उच्चकों के वश की बात नहीं. दूसरी, सोने के पत्र को इस तरह चढ़ाया गया है कि तमाम स्वर्ण पत्र गुंबद के साथ एकाकार हो गये हैं. इन्हें आसानी से अलग करना संभव नहीं होगा. तीसरी, सोना उड़ाने के लिए आकाश से किया गया प्रयास भी संभव नहीं है.
क्योंकि विमान से भी मंदिर के गुंबद तक पहुंच कर सोने को तो अलग किया ही नहीं जा सकता, पूरे गुंबद को भी निकाल पाना संभव नहीं लगता. वजह यह भी कि करीब तीन क्विंटल सोने के अतिरिक्त गुंबद का वजन भी कोई 10 क्विंटल से कम नहीं है. इन तथ्यों के मद्देनजर मंदिर प्रबंधन ने गुंबद में सोने मढ़े जाने से पहले और बाद की सुरक्षा व्यवस्था में कोई खास बदलाव नहीं किया है.

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