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विक्रमादित्य, तेजस और अरिहंत

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2014 में भारत विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में कामयाबी की कुछ नयी इबारत लिख सकता है. हाइस्पीड ट्रेन से लेकर रक्षा और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी तक में देश कुछ नयी कामयाबियों के करीब पहुंच रहा है, जिन्हें इस साल हासिल किया जा सकता है. 2014 की कुछ ऐसी ही उम्मीदों पर नजर डाल रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी.
विक्रमादित्य, तेजस और अरिहंत
तकरीबन दो महीने की यात्रा पूरी करके विमानवाहक पोत विक्रमादित्य को अब जनवरी में भारत आने की आशा है. भारत आने के बाद इसे अरब सागर में नौसेना के करवार स्थित अड्डे पर लाया जायेगा. 284 मीटर लंबे इस युद्ध पोत पर मिग-29के, कामोव 31 और कामोव 28 पनडुब्बी रोधी युद्धक और समुद्री निगरानी हेलिकॉप्टर तैनात होंगे. रक्षामंत्री एके एंटनी ने पिछले महीने स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान ‘तेजस’ को आरंभिक संचालन स्वीकृति (आइओसी) दे दी. इस औपचारिक घोषणा के बाद 2014 में 48 तेजस-मार्क-1 विमान भारतीय वायुसेना से सेवानिवृत्त हो रहे 77 मिग-21 विमानों का स्थान लेंगे. उम्मीद है इस साल के अंत तक इस विमान को फाइनल ऑपरेटिंग क्लियरेंस भी मिलेगी. इसके साथ-साथ इस विमान के मार्क-2 का काम भी इसी साल चलेगा. परमाणु शक्ति चालित पनडुब्बी अरिहंत का परमाणु रिएक्टर पिछले साल अगस्त में चालू किया गया. अभी इसका परीक्षण चल रहा है. अब इस साल इसके हथियारों का परीक्षण होगा. पिछले साल भारत के रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) ने अपने के-15 सागरिका मिसाइल का पानी के नीचे बनाये गये पोंटून से परीक्षण किया था. अब इस साल इसे अरिहंत पर तैनात करके वास्तविक परीक्षण किया जायेगा. इसके बाद भारत को जमीन, आकाश और पानी के भीतर से परमाणु आयुध छोड़ने की क्षमता हासिल हो जायेगी.
जीएसएलवी का प्रक्षेपण इसी हफ्ते
चार जनवरी को जीएसएलवी-डी5 के प्रक्षेपण की उलटी गिनती शुरू हो जायेगी. सब ठीक रहा तो पांच जनवरी को यह श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से यह रॉकेट उड़ान भरेगा . यह अपने साथ 1982 किलोग्राम वजन के उपग्रह जीसैट-14 ले जायेगा. इस उपग्रह में 6 केयू बैंड और छह एक्सटेंडेड सी बैंड ट्रांसपोंडर होंगे, जो देश भर में चल रहे प्रसारण कार्यो को और बेहतर बनायेंगे. इसका जीवनकाल 12 साल का होगा और इसका उपयोग टेली-मेडिसन और टेली-एजुकेशन सेवाओं के लिए भी होगा. इस रॉकेट और उपग्रह का प्रक्षेपण 19 अगस्त, 2013 को अंतरिक्ष में रवाना होने के पहले उलटी गिनती के दौरान रोक दिया गया था. रॉकेट के दूसरे चरण के इंजन से तरल ईंधन के रिसाव का पता चलने के बाद प्रक्षेपण कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया था. जीएसएलवी से ज्यादा यह उसके क्रायोजेनिक इंजन का परीक्षण है. रूसी क्रायोजेनिक इंजन के साथ भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रमोचक रॉकेट (जीएसएलवी) मार्क 1 और 2, इन्सैट-2 श्रेणी के उपग्रहों (2000-2500 किग्रा) को भू-तुल्यकाली अंतरण कक्षा (जीटीओ) में स्थापित करने में सक्षम है. जीएसएलवी की पहली उड़ान 1540 किग्रा भारवाले जीसैट-1 के प्रमोचन द्वारा 18 अप्रैल, 2001 को हुई थी. इसके बाद इसके छह परीक्षण और हुए हैं. इनमें से चार सफल और तीन विफल रहे. रॉकेट के तीसरे चरण के क्रायोजेनिक इंजन का निर्माण और डिजाइन इसरो ने किया है. क्रायोजेनिक इंजन अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली होता है. भारतीय क्रायोजेनिक इंजन की सफलता ऐसे रॉकेटों के निर्माण की दिशा में पहला सफल कदम होगा, जो अधिक वजन उठाने यानी, चार टन तक के भारवाले उपग्रह को ले जाने में सक्षम हो. भविष्य में भारत को दूसरे ग्रहों की यात्र करने लिए या अंतरिक्ष स्टेशन बनाने के लिए चार टन से भी ज्यादा वजन ले जाने वाले रॉकेटों की जरूरत होगी. जीसैट-14 के फौरन बाद इसी साल जीसैट-15 भी छोड़ा जायेगा. इसके लिए यूरोपियन एरियान रॉकेट चुना गया है. इस समय इसरो के पास नौ इन्सैट-जीसैट संचार उपग्रह हैं जो लगभग 195 ट्रांसपोंडरों को विभिन्न प्रकार की फ्रीक्वेंसी बैंड मुहैया कराते हैं. जीसैट-15 दसवां उपग्रह होगा, जिसमें 24 केयू बैंड ट्रांसपोंडर और दो गगन नेवीगेशन पेलोड होंगे.
मंगलयान पर नजर
पिछले साल पांच नवंबर को भारत ने जो मंगलयान छोड़ा था, उसकी सफलता या विफलता का पता इस साल लगेगा. इस यान के लिए हमें खासतौर से जीएसएलवी की जरूरत थी, लेकिन वह समय से तैयार नहीं हो पाया. मंगल पर पिछले साल हम यान न भेजते तो फिर दो साल बाद वह मौका मिलता. इसके कारण हमें मंगलयान का वजन कम करना पड़ा. इसके उपकरणों की संख्या कम हुई. साथ ही, इसका यात्र पथ अपेक्षाकृत लंबा और समय साध्य हो गया.
भारत के मंगलयान के प्रक्षेपण के दो हफ्ते बाद अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने मंगल ग्रह के लिए अपना मावेन (मार्स एटमॉस्फियर एंड वोलाटाइल एवोल्यूशन) यान भेजा है. हमारा मंगलयान इस साल 24 सितंबर को मंगल की कक्षा में प्रवेश करेगा और उसके दो दिन पहले अमेरिकी मावेन. इसकी वजह यह है कि हमारा मंगलयान धरती के प्रभाव क्षेत्र से 30 नवंबर और 1 दिसंबर की रात में बाहर आ पाया. उसके पहले वह इस यान में लगे थ्रस्टरों की मदद से इसे धीरे-धीरे ऊंची कक्षा में लाया गया. इसके विपरीत अमेरिकी यान सीधे ही ऊंची कक्षा में भेज दिया गया था.
बहरहाल, हमारे वैज्ञानिकों ने एक जटिल काम को पूरा करके दिखाया है. मंगल ग्रह पर पहुंचने के बाद मंगलयान और मावेन के बीच आपस में सहयोग होगा. मावेन के मुकाबले मंगलयान मिशन भारत की ओर से एक ‘छोटा और साधारण’ प्रयास है. हम ज्यादा से ज्यादा इसे मंगल की 380 किमी गुणा 80,000 किमी की कक्षा में स्थापित कर पायेंगे.
गगन प्रणाली

इस साल भारत कम से कम बारह उपग्रहों का प्रक्षेपण करेगा. इनमें सबसे महत्वपूर्ण काम है वायु मार्ग की दिशासूचक प्रणाली ‘गगन’ को चालू करना. गगन का पूरा नाम है- जीपीएस एडेड जियो ऑगमेंटेड नेवीगेशन. यह प्रणाली भारतीय आकाश मार्ग से गुजर रहे विमानों के पायलटों को तीन मीटर तक का अचूक दिशा ज्ञान देगी. पिछले साल भारत ने 1 जुलाई को अपने नेवीगेशन सैटेलाइट (आइआरएनएसएस) का प्रक्षेपण करके विज्ञान और तकनीक के मामले में काफी लंबा कदम रखा था. इस नेटवर्क को पूरा करने के लिए अभी छह और सैटेलाइट भेजे जायेंगे. यह काम 2014 में जारी रहेगा और उम्मीद है कि इससे जुड़े अधिकतर उपग्रह इस साल ही छोड़े जायेंगे. चूंकि चार सैटेलाइटों के कक्षा में पहुंच जाने के बाद यह प्रणाली काम शुरू कर देगी, इसलिए उम्मीद है कि इस साल यह काम शुरू हो जायेगा. मालूम हो कि सातों सैटेलाइटों का काम 2015 तक पूरा होना है. ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम का इस्तेमाल हवाई और समुद्री यात्रओं के अलावा सुदूर इलाकों से संपर्क बनाये रखने में भी होता है. इसकी काफी जरूरत सेना को होती है. खासतौर से मिसाइल प्रणालियों के वास्ते.

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