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चली गई थी आंख की रोशनी------

By One News Live
Neha

ढाई साल की उम्र में चली गई थी आंख की रोशनी------

राज्य में कई जिलों में स्टेज प्रोग्राम दे चुके सचेतन राम वॉयलिन पर क्लासिकल, सेमी क्लासिकल आैर आेल्ड सांग्स की धुनों के साथ नए-नए फिल्मी गीतों की धुनें बजाते हैं।

जो प्रकृति के सात रंगों को नहीं देख सका, वह आज सुरों के सातों रंगों में ऐसी ताल बैठा रहा है, जैसे वह सुर सम्राट हो। बचपन से वह भले ही इन रंगों को देख नहीं सका हो, लेकिन उसके हाथ से छिड़ी इंस्ट्रूमेंट की धुनें अब तक कई लोगों की लाइफ में रोशनी फैला चुकी है। हम बात कर रहे हैं शहर की एक शख्स की, जिसने अपना जीवन संगीत को समर्पित कर दिया।
  • - संस्कृत टीचर के पोस्ट से रिटायर्ड सचेतन राम एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने यह साबित कर दिया है कि शरीर के किसी भी अंग की कमी आपकी सफलता में कभी बाधक नहीं बन सकती।
    - ब्रेल लिपि से पढ़कर, वॉयलिन सुनकर, की-बोर्ड आैर गिटार सीखने वाले सचेतन का जब अभ्यास का दौर था तब उन्होंने दिन को दिन आैर रात को रात नहीं समझा।
    - सचेतन आज 64 साल की उम्र में भी ऐसे बच्चों को निशुल्क वॉयलिन सिखाते हैं जो हुनरमंद तो हैं, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उनके पास देने के लिए फीस नहीं।
    ढाई साल की उम्र में चली गई थी रोशनी
    - नागौर के रामश्री गांव के रहने वाले सचेतनराम की दोनों आंखों की रोशनी चेचक बीमारी के कारण चली गई थी। उम्र थी महज ढाई साल। घर पर साधु-संतों का आना जाना लगा रहता था।
    - इसी दौरान एक संत प्रभुदास का आना हुआ, उन्हें जब फैमिली के लोगों ने बच्चे की रोशनी जाने की बात बताई तो वह भावुक हो उठे आैर तय कर लिया यह बच्चा अब उनके साथ रहेगा।
    - 1957 में प्रभुदास के साथ यह बच्चा अजमेर के रामद्वारा में आकर रहने लगा। उन्होंने इसे नाम दिया सचेतन राम। 1960 में ब्लाइंड स्कूल में एडमिशऩ कराया।
    - उस समय ब्लाइंड स्कूल स्पेशल स्कूल्स में गिना जाता था। जहां पहली क्लास से म्यूजिक सीखना अनिवार्य था।

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