Skip to main content
छठ पर्व छठ, षष्टी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसिए व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल सष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया।
chhath
[2]

लोक आस्थाका पर्व - छठ

हमारे देशमें सूर्योपासनाके लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ । मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होनेके कारण इसे छठ कहा गया है । यह पर्व वर्षमें दो बार मनाया जाता है । पहली बार चैत्रमें और दूसरी बार कार्तिकमें । चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठीपर मनाए जानेवाले छठ पर्वको चैती छठ व कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठीपर मनाए जानेवाले पर्वको कार्तिकी छठ कहा जाता है । पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फलप्राप्तिके लिए यह पर्व मनाया जाता है । इस पर्वको स्त्री और पुरुष समानरूपसे मनाते हैं । छठ व्रतके संबंधमें अनेक कथाएं प्रचलित हैं; उनमेंसे एक कथाके अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुएमें हार गए, तब द्रौपदीने छठ व्रत रखा । तब उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवोंको राजपाट वापस मिल गया । लोकपरंपराके अनुसार सूर्य देव और छठी मइयाका संबंध भाई-बहनका है । लोक मातृका षष्ठीकी पहली पूजा सूर्यने ही की थी । छठ पर्वकी परंपरामें बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है, षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगौलीय अवसर है । उस समय सूर्यकी पराबैगनी किरणें (ultra violet rays) पृथ्वीकी सतहपर सामान्यसे अधिक मात्रामें एकत्र हो जाती हैं । उसके संभावित कुप्रभावोंसे मानवकी यथासंभव रक्षा करनेका सामर्थ्य इस परंपरामें है । पर्वपालनसे सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभावसे जीवोंकी रक्षा संभव है । पृथ्वीके जीवोंको इससे बहुत लाभ मिल सकता है । सूर्यके प्रकाशके साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वीपर आती हैं । सूर्यका प्रकाश जब पृथ्वीपर पहुंचता है, तो पहले उसे वायुमंडल मिलता है । वायुमंडलमें प्रवेश करनेपर उसे आयन मंडल मिलता है । पराबैगनी किरणोंका उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्वको संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोनमें बदल देता है । इस क्रियाद्वारा सूर्यकी पराबैगनी किरणोंका अधिकांश भाग पृथ्वीके वायुमंडलमें ही अवशोषित हो जाता है । पृथ्वीकी सतहपर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुंच पाता है । सामान्य अवस्थामें पृथ्वीकी सतहपर पहुंचनेवाली पराबैगनी किरणकी मात्रा मनुष्यों या जीवोंके सहन करनेकी सीमामें होती है । अत: सामान्य अवस्थामें मनुष्योंपर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पडता, बल्कि उस धूपद्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवनको लाभ ही होता है । छठ जैसी खगौलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वीके भ्रमण तलोंकी सम रेखाके दोनों छोरोंपर) सूर्यकी पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतहसे परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती हुई, पृथ्वीपर पुन: सामान्यसे अधिक मात्रामें पहुंच जाती हैं । वायुमंडलके स्तरोंसे आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदयको यह और भी सघन हो जाती है । ज्योतिषीय गणनाके अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मासकी अमावस्याके छ: दिन उपरांत आती है । ज्योतिषीय गणनापर आधारित होनेके कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है ।

छठ पर्व किस प्रकार मनाते हैं ?

यह पर्व चार दिनोंका है । भैयादूज के तीसरे दिनसे यह आरंभ होता है । पहले दिन सैंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दूकी सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है । अगले दिनसे उपवास आरंभ होता है । इस दिन रात में खीर बनती है । व्रतधारी रात में यह प्रसाद लेते हैं । तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं । अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं । इस पूजा में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्ज्य है । जिन घरों में यह पूजा होती है, वहां भक्तिगीत गाए जाते हैं । आजकल कुछ नई रीतियां भी आरंभ हो गई हैं, जैसे पंडाल और सूर्यदेवता की मूर्ति की स्थापना करना । उसपर भी रोषनाई पर काफी खर्च होता है और सुबह के अर्घ्यके उपरांत आयोजनकर्ता माईक पर चिल्लाकर प्रसाद मांगते हैं । पटाखे भी जलाए जाते हैं । कहीं-कहीं पर तो ऑर्केस्ट्राका भी आयोजन होता है; परंतु साथ ही साथ दूध, फल, उदबत्ती भी बांटी जाती है । पूजा की तैयारी के लिए लोग मिलकर पूरे रास्ते की सफाई करते हैं ।

उत्सव का स्वरूप

छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते।

नहाय खाय

पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाइ कर उसे पवित्र बना लिया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।

लोहंडा और खरना

दूसरे दिन कार्तीक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

संध्या अर्घ्य

तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।
शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृश्य बन जाता है।

उषा अर्घ्य

चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। ब्रती वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।

व्रत

छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताई जाती है। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं। पर व्रती ऐसे कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की होती है। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। ‘शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालोंसाल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।’
ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत रखती हैं। किंतु पुरुष भी यह व्रत पूरी निष्ठा से रखते हैं।

सूर्य पूजा का संदर्भ

छठ पर्व मूलतः सूर्य की आराधना का पर्व है, जिसे हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। हिंदू धर्म के देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है।
सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है। from wikipidia

Comments

Popular posts from this blog

युवाओ के प्रेरणास्रोत: स्वामी विवेकानंद को शत शत नमन .  12 जनवरी 2013 स्वामी विवेकानंद की 150 वीं जयंती : राष्ट्रिय युवा दिवस।   युवाओ के सच्चे मार्गदर्शक के रूप में अपने देश को एक देवतुल्य इंसान मिला . इन्हें दार्शनिक , धार्मिक ,स्वप्न दृष्टा  या यो कहे की भारत देश की सांस्कृतिक सभी अवधारणा को समेटने वाले स्वामी विवेकानंद अकेले व असहज इंशान थे .इन्हें एक सच्चा यायावर संयाशी  भी कहा जाता है  हम युवा वर्गे इनकी सच्ची पुष्पांजलि तभी होगी जब हमारे  देश में आपसी द्वेष व गरीबी भाईचारा आदि पर काबू पा लेंगे .हम युवाओ के लिए स्वामी जी हमेशा प्रासंगिक रहेंगे .देश के अन्दर कई जगहों पर इनके नाम पर कई संस्थाए कार्यरत है उनके बिचारो को आम आदमी तक पहुचाने का बीरा हम युवा साथी के कंधो पर है . विश्व के अधिकांश देशों में कोई न कोई दिन युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में स्वामी विवेकानन्द की जयन्ती , अर्थात १२ जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार सन् 1985 ई. को अन्तरराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया गया। इसके महत्त्व

lagu ho comman school system mukuchand dube

        साभार जागरण लागू हो सामान्य स्कूली शिक्षा प्रणाली : मुचकुंद दुबे  देश भर में सामान्य स्कूल प्रणाली लागू होने के बाद ही स्कूली शिक्षा में सुधार हो सकता है। उक्त बातें बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ व वालन्ट्री फोरम फार एजुकेशन, बिहार के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए सामान्य स्कूल प्रणाली आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. मुचकुंद दूबे ने पटना में कहीं। गुरुवार को तीन सत्रों में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। प्रो. दूबे ने कहा कि जब वे सामान्य स्कूल प्रणाली आयोग के अध्यक्ष थे उस समय सरकार के पास जो भी रिपोर्ट सौंपी थी, उसे सरकार ने आगे नहीं बढ़ाया। उस पर काम रुक गया। उन्होंने शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीइ) की आलोचना करते हुए कहा कि इसके लिए जो मानक तय किये गये थे, उसका पालन नहीं हो रहा है। 0-6 व 14-18 वर्ष के बच्चे इन अधिकारों से वंचित ही रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व सांसद सह बिहार माध्यमिक शिक्षा संघ के शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने शिक्षा बचाओ, देश बचाओ का नारा लगाते हुए कहा कि वे अब गिरती शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन करेंगे तथा लोगो
‘डीपीएस’ आरके पुरम के प्रिंसिपल डीआर सैनी की बेटी की मौत, सुसाइड की आशंका जनसत्ता   'डीपीएस' आरके पुरम के प्रिंसिपल डीआर सैनी की बेटी की मौत नई दिल्ली। दिल्ली के जाने माने स्कूलों में से एक ‘डीपीएस’ आरके पुरम के प्रिंसिपल डीआर सैनी की बेटी अंजना सैनी की मौत हो गई है। सूत्रों की मानें तो प्रिंसिपल डीआर सैनी की बेटी अंजना का शव स्कूल कैंपस में मौजूद प्रिंसिपल के घर में पंखे से लटका पाया गया है। इस घटना की ख़बर मिलते ही पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है। अंजना 29 साल की थी और वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करती थी। पुलिस और क्राइम इन्वेस्टिगेशन टीम ने अपनी जांच ज़ोरों से शुरू कर दी है।